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प्रस्तुति
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उनमें जो सहज-सरल भावाभिव्यक्ति हुई है, वह अपूर्व है।
इस प्रकार इन सब विधाओं में जो विचार व्यक्त हुए हैं वे युग-युग तक जनता का पथदर्शन करने में सक्षम हैं । काव्य साहित्य
___ काव्य एक ऐसी धारा है जिसमें अवगाहन करने वाला स्व और पर की सीमा से ऊपर उठकर लोकोत्तर आनंद में डुबकी लगाता है। इसलिए इसे ब्रह्मानंद-सहोदर की संज्ञा दी गयी है । काव्य आत्मा की संकल्पात्मक तथा संवेदनात्मक अनुभूति है। युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ अत्यंत नपे-तुले शब्दों में काव्य की परिभाषा करते हुए कहते हैं-'चेतना के महासिंधु में पवन का प्रवेश और उत्ताल ऊमिजाल का उच्छलन यही है काव्य की परिभाषा ।' एक अन्य स्थान पर वे ते लिखते हैं-संवेदना से जो निकलता है और जो दूसरों में संवेदना भर देता है-वही है काव्य । युवाचार्यश्री दार्शनिक हैं, लेखक हैं पर कवि नहीं हैं और न ही वे इसमें इतना रस लेते हैं, किन्तु अपनी विशेष अनुभूति और संवेदना को उन्होंने जब भाषा का परिधान पहनाया वह स्वतः काव्य बन गया। इसी बात को वे स्वयं भी फूल और अंगारे' पुस्तक की भूमिका में लिखते हैं----'कविता मेरे जीवन का प्रधान विषय नहीं है। मैंने इसे सहचरी का गौरव नहीं दिया। मुझे इससे अनुचरी का-सा समर्पण मिला है। मैंने कविता का आलंबन तब लिया जब चिन्तन का विषय बदलना चाहा, मैंने कविता का आलंबन तब लिया जब थकान का अनुभव किया ।'
इतना होते हुए भी युवाचार्यश्री के काव्य साहित्य में वेधकता है, नवीनता है और गहन अनुभूति है। 'कवयः क्रान्तदर्शिनः' यह सूक्त युवाचार्यश्री के काव्य में चरितार्थ होता है । उन्होंने ओजस्वी और कान्तवाणी में समाज की अनेक बुराइयों को झकझोरा है। वे रूढिवादिता और पुराणपंथिता को छोड़कर कुछ नया करने का आह्वान करते हुए लिखते हैं
पुराने घर को फूंक डाल, जहां अंधेरा है । पुराने साथियों को छोड़ दे, जो रूढिवादी हैं। पुराने नेता के सामने मत झुक, जो देशद्रोही हैं। नया संसार जो बसाना है........
युवाचार्यश्री के काव्य की भाषा एक ओर सरल, सुबोध, और एवं सुगम है तो कहीं-कही जटिल, रहस्यमय एवं दुर्गम भी है । भाषा की जटिलता; प्रयत्नजन्य नहीं किंतु विषय के अनुसार सहज ही प्रयुक्त हो गई है। दिनकर अपने 'काव्य की भूमिका' ग्रंथ में लिखते हैं कि गहन गंभीर अनुभूतियों को अत्यधिक सरल बनाने की इच्छा सदैव साधु नहीं होती। अनेक बार हम ऐसी अनुभूतियों के सामने आ जाते हैं जिन्हे यदि बहुत सुस्पष्टता से लिखने की
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