SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण परिस्थिति से उत्पन्न विशृंखलता का समाधान भी प्रस्तुत है । इनमें कुछ कथाएं काल्पनिक, कुछ ऐतिहासिक तथा कुछ कथाएं हास्यप्रधान भी हैं । कहीं-कहीं एक ही कथा को उन्होंने भिन्न-भिन्न प्रसंगों में भिन्न-भिन्न रूप से भी प्रस्तुत किया है। उनकी कथाओं की एक सबसे बड़ी विशेषता है कि भाषा कसी हुई है। कहीं भी अनावश्यक विस्तार करके कथानक के तत्त्व को शिथिल या नीरस नहीं होने दिया है । कथा के माध्यम से दार्शनिक गुत्थियों को सुलझाकर उसका निष्कर्ष निकालने की अद्भुत क्षमता युवाचार्यश्री में है। ____ कथा के माध्यम से जो अवबोध उन्हें इष्ट है वह मार्मिक ढंग से प्रस्तुत हुआ है। कथाओं का प्राण है उनका निगमन । वह प्राण ही दूसरों को अनुप्राणित करता है और यह महाप्रज्ञ की कथाओं की विशेषता है । उपन्यास ___ साहित्यिक विधाओं में आज उपन्यास सबसे अधिक लोकप्रिय तथा महत्त्वपूर्ण विधा मानी जाती है। जीवन और जगत् की जितनी महत्त्वपूर्ण और सही झांकी उपन्यास में संभव है उतनी अन्य किसी विधा में नहीं। इसमें पात्रों के माध्यम से रोचक शैली में बहुत कुछ कहा जा सकता है। यद्यपि युवाचार्यश्री उपन्यास लेखक नहीं हैं और न ही उनकी इसमें रुचि है। किंतु उन्होंने 'निष्पत्ति' नामक एक छोटा-सा उपन्यास लिखा है। यह उपन्यास आकार में लघु होते हुए भी जीवन की नई व्याख्या प्रस्तुत कर मानव-चरित्र के अनेक चित्रों को प्रस्तुत करता है। यह दार्शनिक शैली में लिखा गया विचार-प्रधान उपन्यास है जो हिंसा-अहिंसा की अवधारणा को स्पष्ट कर मानवीय जीवन के अनेक रहस्यों का समाधान प्रस्तुत करता है। इसमें स्थूल मनोरंजकता नहीं, अपितु जीवन के उन्नयन का दिशा-निर्देश है। 'श्रमण महावीर' पुस्तक यद्यपि जीवनी रूप में है, पर भाषा-शैली की दृष्टि से वह उपन्यास की भांति रोचक और प्राणवान् है । पत्र साहित्य हिंदी में पत्र साहित्य का महत्त्व इसलिए मान्य है कि पत्र-लेखक मुक्त होकर अपने आपको इसमें व्यक्त करता है । युवाचार्यश्री ने संस्कृत तथा हिंदी में अनेक लम्बे पत्र आचार्यश्री को संबोधित करके लिखे हैं जिनको साहित्यिक पत्र कहा जा सकता है। साधु-साध्वियों के नाम से भी उन्होंने यदा-कदा आवश्यकतावश पत्र लिखे हैं। वे संबोधित व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन के लिए तो उपयोगी हैं ही किंतु उनसे हरेक व्यक्ति आत्मजागृति, सादगी, संयम और सर्जन की नई प्रेरणा ले सकता है। युवाचार्यश्री का पत्र-साहित्य अभी तक प्रकाशित नहीं हो सका है । यत्र-तत्र पत्रिकाओं में कुछ पत्र प्रकाश में आए हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy