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________________ प्रस्तुति यात्रा साहित्य ___यात्रा साहित्य की परम्परा बहुत प्राचीन है । संस्कृत के मेघदूत काव्य में मेघ को यात्रा-पथ का निर्देश करता हुआ कवि अपने द्वारा की गई यात्राओं की स्पष्ट झलक दे जाता है। पशु-पक्षियों की यात्रा, शिकारियों की यात्रा, सांस्कृतिक यात्रा, ऐतिहासिक यात्रा, भौगोलिक यात्रा, राजनैतिक यात्रा तथा धार्मिक यात्रा- ये यात्राओं के विभिन्न विषय हैं। डॉ. त्रिगुणायत के अनुसार यत्रा साहित्य पांच प्रकार का होता है-- १. सूचना एवं विवरण प्रधान २. प्राकृतिक सौन्दर्य से उदभूत उल्लास को व्यक्त करने वाला ३. जीवन दर्शन का संकेत करने वाला ४. डायरी के रूप में संस्मरणात्मक ५. व्यक्तिगत पत्रों के रूप में लिखे गए यात्रावृत्त । लेखक स्वयं अपनी यात्रा का वर्णन कर सकता है तथा दूसरों की यात्रा का उल्लेख भी। युवाचार्यश्री अपने गुरु आचार्य श्री तुलसी के प्रति अत्यन्त श्रद्धानिष्ठ एवं समर्पित हैं तथा उनकी पदयात्रा के सहभागी भी रहे हैं। उन्होंने यात्रावृत्त के रूप में कुछ देखा कुछ सुना कुछ समझा' पुस्तक की रचना की है। यह पुस्तक जहां वैचारिक दृष्टि से अनेक महत्त्वपूर्ण पहलुओं को व्यक्त करती है, वहां यात्रा से संबंधित अनेक संस्मरणों के कारण बहुत सरस और रोचक भी है। इसमें लेखक ने पदयात्रा के महत्त्व को बहुत सटीक शब्दों में उजागर किया है। कहानी ___ कहानी गद्य साहित्य की एक रोचक विधा है। यह स्थूल या सूक्ष्म कथानक के साथ समाज की किसी एक स्थिति, जीवन की किसी एक समस्या मनुष्य की किसी एक प्रवृत्ति या उसके चरित्र की किसी एक विशेषता का छोटासा चित्र अंकित कर देती है। कथा के माध्यम से बात कहने की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है । युवाचार्यश्री भी अपने प्रवचन में कथाओं का प्रयोग करते हैं, जिससे श्रोता प्रतिपाद्य को सरलता से हृदयंगम कर सके। विद्वानों का कहना है कि 'सब पे उत्तम कहानी वह होती है जो किसी मनोवैज्ञानिक सत्य पर आधारित हो।' यह तथ्य युवाचार्यश्री द्वारा प्रयुक्त प्राय: सभी कथाओं के साथ घटित होता है। उनके प्रवचनों में प्रयुक्त कथाओं का संकलन 'महाप्रज्ञ की कथाएं' इस नाम से पांच खण्डों में विभक्त है । इन कथाओं में आकार की लघुता, संवेदन की तीव्रता, प्रभावान्विता, जीवन के किसी एक सत्य खंड की प्रतिष्ठा, रोचकता और सक्रियता आदि अनेक विशेषताएं हैं। इन कथाओं में सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना तथा बदलती हुई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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