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ज्योति ज्योतिर्मय
बन्दी भाव
अनुभव
झपट झुकाव झुकाव
भाव
१२६
भाव
टीस
टेढी सीधी रेखाएं
भाव भाव
भाव
नास्ति विजय
१३० ५६
गूंजते
फूल
७६
४७
१२८
७६
तट का बन्धन तट की रेखा तट की रेखा तड़प है तन्त्र अपना ही बनाएं तपस्वी की जटा तब और अब तर्क और प्रेम तर्क का हनन तर्क की अन्त्येष्टि तर्क की सीमा तलवार आदमी को काट देती है तुच्छ और महान् तुम अन्तर्जगत् में बड़े बनकर तुम अन्धे होते तो तुम अपने आराध्य की तुम चाहते हो तुम निवृत्ति की ओर चलो तुमने तुम महाग्रंथ हो तुम सत्य को ढूंढ रहे थे तुम सपना लेना जानते हो ?
बन्दी फल बन्दी अनुभव अनुभव भाव गूंजते भाव गूंजते गूंजते गूंजते गूंजते
१०६
गूंजते
गूंजते गूंजते गूंजते
गूंजते
गद्य-पद्य काव्य / ८१
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