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विजय
१५८
गूंजते
४१
चलता चल चलनी ने तीखा व्यंग्य कसा चाह और राह चिता चिनगारी चिन्तन चीर
भाव फूल फूल अनुभव भाव
चुभन
चोटी की दूरी को
भाव गूंजते
१२७
छिद्र
भाव
KG
अनुभव भाव गूंजते गूंजते फूल गूंजते बन्दी विजय विजय भाव विजय
१२६
२४
जंगल का कानून जटिल और सरल जड़ की बात जल चाहता है मुझे कोई न बांधे जलना हो तो भले जलो जलने वाला कौन जलने से पहले कोयला होता है जलाना : बुझाना जहां इन्द्रधनुष नहीं होता जहां स्पन्दन नहीं है जागरण जागरण का संदेश जागरण का संदेश जीवन के नैतिक मूल्य जीवन के पीछे जो मैंने देखा वह देखा जो रेखा खींचना जानता है जो सोचता है अपने लिए ज्ञान और विश्वास की दूरी
११६
११८
५३
०
नास्ति
0
0
अनुभव भाव
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फूल गूंजते गूंजते
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८० / महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण
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