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प्रस्तुति
उनके साहित्य में अनेक स्थलों पर पाठक को ऐसा प्रतीत होता है कि पुनरावृत्ति हो रही है, किन्तु यह पुनरावृत्ति उनकी शैलीगत विशेषता है । विशेष कथ्य को दुहराने से वह श्रोता एवं पाठक के हृदयंगम हो जाता है तथा उन विचारों की महत्ता भी स्पष्ट हो जाती है। इसके अतिरिक्त अधिकांशत: वे शिविरों में प्रवचन करते हैं इसलिए उनके सामने श्रोता नए होते हैं । अतः कुछ मूलभूत बातें उन्हें बार बार कहनी पड़ती हैं ।
शब्दों का चुनाव, वाक्यों का विन्यास तथा भावों और विचारों का विकास शैली के मौलिक तत्त्व हैं । इन तीनों विशेषताओं का समावेश उनके लेखन एवं वक्तृत्व में मिलता है।
साहित्य की गतिविधि एवं द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव के अनुसार उनके साहित्य के विषय एवं शैली बदलती रही है। इसलिए कहीं-कहीं उनके विचारों में विरोधाभास भी प्रतीत होता है। किंतु सापेक्ष दृष्टि से देखें तो यह विरोधाभास नहीं, क्योंकि महान् व्यक्तियों की रचना जीवन के विविध पह: लुओ से संयुक्त रहती है। सामान्य मानव को उनमें विरोध दीख पड़ता है, पर वह विरोध नहीं, सर्वांगीणता की ओर उठा एक कदम है। साहित्यिक विधाएं
हिंदी साहित्य में नई विधाओं का जन्म आधुनिक युग के साथ हुआ । अपने भावों को अच्छी तरह व्यक्त करने के लिए साहित्यकार नवीन विधाओं की खोज करता है, जिससे वह आकर्षक ढंग से विचार व्यक्त कर सके । साहित्य के क्षेत्र में मुख्यतः दो विधाएं अधिक प्रसिद्ध हैं-गद्य और पद्य ।
गद्य की निम्न विधाएं आज अधिक प्रसिद्ध हैं-१. निबंध २. रेखाचित्र, ३. संस्मरण, ४. रिपोर्ताज ५. डायरी, ६. साक्षात्कार, ७. गद्यकाव्य, ८, जीवनी, आत्मकथा, ६. यात्रावृत्तांत, १०. एकांकी, ११. कहानी, १२. उपन्याल, १३. पत्र ।
__ युवाचार्यश्री ने अपनी अभिव्यक्ति को विविध आयाम दिये हैं। उन्होंने अनेक विधाओं में लिखा है तथा उन्हें एक नया रूप भी दिया है । उनकी साहित्यिक विधाओं का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार हैनिबंध
विशेष रूप से बंधी हुई गद्य रचना निबंध कहलाती है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के विचार में निबंध गद्य की कसौटी है। क्योंकि गद्य की समस्त विधाओं में निबंध अभिव्यक्ति का सर्वाधिक सशक्त माध्यम है । यद्यपि निबंध के अनेक भेद हो सकते हैं, किन्तु मुख्यत: निबंध के चार भेद मिलते हैं---
१. विचारात्मक २. भावात्मक ३. वर्णनात्मक ४. कथात्मक ।
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