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________________ ८ महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण विचारात्मक निबंध बौद्धिकता प्रधान होते हैं । इनमें विषय गांभीर्य तथा भाषा कसी हुई होती है । इनमें किसी एक विचार पर लेखक अपने भाव व्यक्त करता है । 'घट-घट दीप जले' के प्रायः सभी लेख विचारात्मक हैं । भावात्मक निबंध इन निबंधों में हृदय पक्ष की प्रधानता और निजी अनुभूति की गहनता तथा सघनता अभिव्यक्त होती है। इनमें तर्क-वितर्क को उतना महत्त्व नहीं दिया जाता जितना भावोद्रेक को दिया जाता है । 'मैं: मेरा मनः मेरी शांति' के प्रायः सभी निबंध इसी कोटि के हैं । वर्णनात्मक निबंध वर्णनात्मक निबंधों में किसी वस्तु, दृश्य या घटना का विस्तार से वर्णन किया जाता है । कथात्मक निबंध कथात्मक निबंधों का आधार कथा होती है, जिसे लेखक कल्पना का पुट देकर रोचक बना देता है । इनमें काल्पनिक इतिवृत्त, पौराणिक आख्यान, ऐतिहासिक कथानक आदि अनेक प्रकार की कहानियों का उपयोग किया जा सकता है । इनके अतिरिक्त ललित निबंध, उपदेशात्मक निबन्ध आदि अनेक भेद किए जा सकते हैं । युवाचार्य श्री के साहित्य में प्रायः सभी निबंधों के उदाहरण मिलते हैं । प्रीस्टले के अनुसार अच्छा निबंध वह है जो साधारण बातचीत जैसा प्रकट हो किन्तु उसमें गुरु-गंभीर चिंतन भरा हो । इस दृष्टि से युवाचार्य श्री के निबंध सरल और सामान्य होते हुए भी एक गभीरिमा लिए हुए हैं । उनके प्रवचनों में सूक्ष्म निरीक्षण के साथ-साथ हास्य, व्यंग्य एवं विनोद की प्रवृत्ति भी है । वर्तमान में निबंधों की निम्न शैलियां विख्यात हैं--- १. व्यास २. समास ३. धारा ४. विक्षेप ५. प्रलाप । युवाचार्य श्री ने व्यास और धारा शैली में अपने विचार व्यक्त किए हैं । कहीं-कहीं समास शैली का प्रयोग भी मिलता है । उनके निबन्धों के शीर्षक भी अपना वैशिष्ट्य रखते हैं । शीर्षक पाठक के ध्यान को आकर्षित करते हैं तथा पढ़ने की प्रेरणा देते हैं । उनके प्राय: शीर्षक अत्यन्त रोचक, जिज्ञासा - प्रधान और चुम्बकीय शक्ति लिए हुए हैं । जैसे'जीवन की तुला: समता के बटखरे', 'क्या दुःख को कम किया जा सकता है ?" 'मैत्री बुढ़ापे के साथ', 'युद्ध अहंकार के साथ', 'कम्प्यूटर हमारे भीतर है' आदि-आदि। कुछ शीर्षक रहस्यात्मक भी हैं, जिन्हें पढ़ने पर ही शीर्षक स्पष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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