SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण ___ सभी रचनाओं का हिन्दी में अनुवाद होने के कारण संस्कृत और हिंदी पाठक दोनों इससे लाभान्वित हो सकते हैं। इसकी प्रस्तुति में युवाचार्य श्री ने अपने संस्कृत भाषा के यात्रापथ और क्रमिक विकास का उल्लेख भी किया है। तुलसी मञ्जरी प्रस्तुत ग्रंथ आचार्य हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण की बृहत्प्रक्रिया रूप है । अष्टाध्यायी का क्रम विद्यार्थी के लिए सहजगम्य नहीं होता। वह उसको हृदयंगम करने में कठिनाई का अनुभव करता है। इसलिए उसकी अपेक्षा प्रक्रिया का क्रम अधिक उपयोगी और सहजग्राह्य होता है । इसी दृष्टि से इस प्रक्रिया-ग्रन्थ का निर्माण हुआ। इस कृति का नामकरण आचार्य तुलसी के नाम पर हुआ है । प्रक्रियाग्रन्थ की प्रकृति के अनुसार इसमें शब्दों के सिद्धिकारक सूत्र पास-पास में उपलब्ध हो जाने के कारण विद्यार्थियों को शब्द-सिद्धि करने में सुगमता और सरलता हो जाती है । हेमचन्द्र की प्राकृत व्याकरण में यह सुविधा नहीं है । उसमें एक ही शब्द की सिद्धि के लिए दो-चार सूत्र भी लंबे व्यवधान के बाद उपलब्ध होते हैं । विद्यार्थी उसमें उलझ जाता है। प्रस्तुत कृति में १११६ सूत्र हैं। इसमें सात परिशिष्ट हैं(१) अकारादिक्रम से सूत्र (२) प्राकृत शब्दरूपावलि, (३) धातुरूपावलि (४) धात्वादेश (५) देशीधातु (६) आर्ष-प्रयोग (७) गण यह प्राकृत पढ़ने वालों के लिए एक सुगम व्याकरण ग्रंथ है। संस्कृतं भारतीया संस्कृतिश्च अखिल भारतवर्षीय संस्कृत साहित्य सम्मेलन, काशी ने एक गोष्ठी आयोजित की थी। उसमें भारत के विभिन्न विद्वानों ने प्रस्तुत विषय पर अपने-अपने निबंध भेजे थे। कुछेक विद्वानों ने उस गोष्ठी में उपस्थित होकर अपने निबंधों का वाचन किया था। उस समय युवाचार्य श्री ने भी संस्कृत निबंध लिखा और एक विद्वान् गृहस्थ ने उसका वहां वाचन प्रस्तुत किया। __जैन, बौद्ध और वैदिक परम्परा की त्रिवेणी भारतीय संस्कृति की मूल आधार है । जैन आचार्यों ने मूलत: प्राकृत भाषा के भंडार को भरा और बौद्ध मनीषियों ने पाली भाषा में साहित्य-सर्जन किया। किन्तु इन धाराओं के अनेक मनीषी आचार्यों ने संस्कृत भाषा के विकास और उन्नयन के लिए सतत प्रयत्न किया और प्रचुर साहित्य की रचना की, जो आज भी भारतीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy