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संस्कृत साहित्य
इसका मूलस्पर्शी हिन्दी अनुवाद सहज और सरल है। हिन्दी भाषी व्यक्ति भी इस ग्रन्थ का रसास्वादन कर सकते हैं। यह युवाचार्य श्री का प्रथम संस्कृत ग्रन्थ है जो तेरापंथ द्विशताब्दी पर प्रकाशित हुआ था।
अतुला तुला
प्रस्तुत कृति युवाचार्य श्री के संस्कृत काव्यों का संकलन है। इसमें युवाचार्य श्री के तीस-तीस वर्षों की स्फुट रचनाएं तथा उत्तरवर्ती कुछेक रचनाएं भी संकलित हैं।
युवाचार्य श्री ने लिखा है .....इन रचनाओं के पीछे इतिहास की एक शृंखला है । अच्छा होता कि प्रत्येक रचना की पृष्ठभूमि में रही हुई स्फुरणा का इतिहास मैं लिख पाता। पर काल की इस लम्बी अवधि में जो कुछ घटित हुआ वह पूरा का पूरा स्मृति-पटल पर अंकित नहीं है । जो कुछ अंकित है उसको लिपिबद्ध करने का भी अवकाश नहीं है। फिर भी कुछेक स्फुरणाओं का इतिवृत्त इसमें है।'
प्रस्तुत संकलन में सभी श्लोक सहज स्फुरणा से स्फूर्त नहीं हैं । इसमें आशुकवित्व का भी एक विभाग है। आशुकविता में व्यक्ति को समस्या या विषय से प्रतिबद्ध होकर चलना पड़ता है। आचार्य श्री के प्रवचन के विशेष आयोजन होते तब आशुकवित्व का उपक्रम भी रहता। उनमें आशुकविता के लिए समस्यापूर्ति या विषय दिए जाते। कुछ विद्वान् आश्चर्यभाव से, कुछ चमत्कारभाव से और कुछ परीक्षाभाव से समस्याएं देते । छंद की प्रतिबद्धता भी उसमें होती। उनकी पूर्ति में कविकर्म की अपेक्षा बौद्धिकता का योग अधिक रहता।
___आचार्यश्री ने अनेक ऐतिहासिक स्थलों की यात्राएं की। उन ऐतिहासिक स्थलों के विषय में युवाचार्य श्री के प्रस्फुटित काव्य भी इस संकलन
पुस्तक में रचनाओं का यथासंभव काल और क्षेत्र का भी निर्देश दिया है, जिससे कि उनकी ऐतिहासिक पहचान और भाव-भाषा का उतार-चढ़ाव ज्ञात हो सके। देश-काल के परिवर्तन के साथ-साथ भाषा, शैली और अभिव्यंजना में भी अन्तर आता है ।
इसमें संकलित कुछ रचनाएं स्वतंत्र अनुभूति के क्षणों में लिखी गई हैं। उनके पीछे कोई घटना, प्रकृति का पर्यवेक्षण या कोई विशिष्ट प्रसंग नहीं हैं । वे रचनाएं दर्शन-संपुटित हैं।
____प्रस्तुत कृति के पांच विभाग हैं - (१) विविधा (२) आशुकवित्वम् (३) समस्यापूर्तिः (४) उन्मेषाः (५) स्तुतिचक्रम्
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