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महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण
इस खंड-काव्य की यही कथावस्तु है। मंदाक्रान्ता छन्द संस्कृत का प्रिय छन्द है। कालीदास ने मेघदूत काव्य की रचना इसी छन्द में की थी। युवाचार्यश्री ने इसी छन्द के माध्यम से अश्रुवीणा की रचना कर अतीत को वर्तमान में प्रतिध्वनित किया है ।
इसमें सौ श्लोक हैं । अन्तिम श्लोक में अश्रुवीणा के निनाद की सफलता प्रतिपादित होती है
जाता यस्मिन् सपदि विफला हावभावा वसानां, कामं भीमा अपि च मरुतां कष्टपूर्णाःप्रयोगाः। तस्मिन् स्वस्मिल्लयमुपगते वीतरागे जिनेन्द्रेऽमोघो जातो महति सुतरामश्रुवीणानिनादः ।।
मुकुलम् इसमें छोटे-बड़े उनपचास संस्कृत निबंधों का समावेश है । यह पुस्तक संस्कृत का अभ्यास करने वाले छात्रों के लिए लिखी गई है। इसकी संस्कृत भाषा प्रांजल, प्रसादगुण से ओतप्रोत और प्रवाहपूर्ण है। इसमें वर्णनात्मक तथा भावात्मक विषयों के अतिरिक्त संवेदनात्मक विषयों का भी समावेश
युवाचार्य श्री अपने विचारों को अभिव्यक्ति देते हुए कहते हैं- 'सौन्दर्य की अपेक्षा वर्तमान स्थिति का या वस्तुस्थिति का चित्रण अधिक आकर्षक होता है। इसमें जरा भी संदेह नहीं कि धार्मिक विचारों का प्रतिनिधित्व करने वाले सरस साहित्य के संयोग से पाठकों का सुकुमाल हृदय परिमार्जित होता है। इसी विचार से मैंने प्रस्तुत ग्रन्थ में कतिपय विषयों का संक्षेप में आकलन किया है । यह ग्रंथ विद्याभिलाषी छात्रों की पाठ्यविधि की दृष्टि से लिखा गया है । प्रतिदिन एक पाठ पढ़ा जा सके, इस दृष्टि से प्रत्येक निबंध में संक्षिप्त वर्णन शैली अपनाई गई है । मार्ग-दर्शन देने की दृष्टि से कहीं-कहीं जटिल वाक्यों का तथा अन्वेषणीय शब्दों का प्रयोग भी इसमें किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने अपने पठन-विधि के द्योतक पांच निबंध लिखे हैं-युवा शिक्षकः, तानि दिनानि, पाठन कौशलम्, भयप्रीत्योः समिश्रणं और पारस्परिक: सम्बन्धः । इनके माध्यम से गुरु-शिष्य के सम्बन्धों का सुन्दर चित्रण प्रस्तुत हुआ है ।
__ संस्कृत में गति करने के इच्छुक विद्यार्थियों के लिए यह पुस्तक अत्यंत उपयोगी है। इसमें भिन्न-भिन्न प्रसंग पर प्रयुक्त एक अर्थ के द्योतक भिन्नभिन्न शब्द विद्यार्थी के शब्द-भंडार को भरने में सक्षम हैं। इसके पठन से संस्कृत कोश का ज्ञान भी सहज हो जाता है।
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