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संस्कृत साहित्य
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है । स्थिरीकरण, सुख-बोध, पुरुषार्थ-बोध, सहज आनन्द, साधन-बोध आदिआदि ये कुछेक अध्यायों के नाम हैं । इनमें तद् तद् विषय का पूरा अवबोध है । यह ग्रंथ जैन दर्शन को समझने का अनुपम साधन है ।
अश्रुवीणा
राजकुमारी चंदनबाला की घटना भगवान् महावीर के तपस्वी जीवन से संबंधित एक विश्रुत घटना है । इसी घटना को कवि ने संस्कृत खंड-काव्य में प्रस्तुत किया है । इसकी कथावस्तु रोमाञ्चक है । अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त संस्कृत विद्वान् डा० सतकोडिमुखर्जी ने इस काव्य के विषय में लिखा है'प्रस्तुत काव्य में जहां एक ओर शब्दों का वैभव है, वहां दूसरी ओर अर्थ की गंभीरता है । इसमें शब्दालंकार और अर्थालंकार एक दूसरे से बढे - चढे हैं । भक्तिरस से परिपूर्ण उदात्त कथावस्तु का आलंबन लेकर यह लिखा गया है ।'
चम्पा नगरी के राजा दधिवाह्न की पुत्री राजकुमारी वसुमती का अपहरण हुआ । एक रथिक उसे उठा ले गया और कोशांबी के बाजार में बेच डाला । धनावह सेठ ने उसे खरीदा और उसका नाम रखा चंदना । एक बार धनावह की पत्नी को संदेह हुआ कि इस रूप - योवना को मेरा पति पत्नी न बना ले । वह संदेह में पलती रही। एक बार अवसर देखकर सेठानी ने चंदना का सिर मुंडाया, हाथ पैर में जंजीर डाली और उसे एक काल-कोठरी में डाल दिया ।
भगवान् महावीर कोशांबी आए । उनके उग्र तपस्या चल रही थी । पांच मास और पच्चीस दिन बीत गए थे । उनका घोर अभिग्रह अभी फलीभूत नहीं हो पाया था । छबीसवें दिन वे धनावह की कोठी पर भिक्षा लेने आए । उनके अभिग्रह के तेरह बोल थे ।
उसी दिन सेठ धनावह यात्रा से घर आया। चंदना को देखा वह अवाक् रह गया । वह जंजीर को तुड़वाने के लिए लुहार को बुलाने गया । इधर भगवान् घर पर आ गए। भगवान् को देख चन्दना हर्ष - विभोर हो उठी । वह सारी प्रताड़नाओं को भूल गई । भगवान् ने ज्ञान से देखा । अभिग्रह - पूर्ति की सारी बातें मिल गईं । केवल एक बात शेष थी । वह यह कि चंदना के आंखों में आंसू नहीं थे । भगवान् बिना कुछ भिक्षा लिए मुड़ गए । यह देखकर चंदना की आंखों में आंसू छलक पड़े ।
प्रस्तुत कृतिकार ने चंदना के इन आंसुओं को दूतिकर्म के लिए चुना है | चंदना इस अश्रु प्रवाह के माध्यम से भगवान् के पास अपनी भावना प्रेषित करती है। आंसुओं की भाषा को समझकर भगवान् मुड़ जाते हैं और चंदना के हाथ से उबले हुए उड़द के दाने ग्रहण कर अपनी दीर्घ तपस्या का पारणा करते हैं ।
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