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७. संस्कृत साहित्य
आजकल संस्कृत को मृत भाषा माना जाता है। इस भाषा में लिखना तो दूर इसे शुद्ध बोलने वाले व्यक्ति भी बहत कम मिलते हैं। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने हजारों महत्त्वपूर्ण ग्रंथ इस भाषा में लिखे हैं । युवाचार्य श्री ने भी संस्कृत भाषा में गद्य-पद्य साहित्य की रचना की है। सोलह अध्यायों में विभक्त सम्बोधि को जैन गीता का स्थान प्राप्त है। 'अश्रवीणा' मंदाक्रांता छंद में रचित खंड-काव्य है । 'अतुला तुला' में आशुकविता के श्लोकों तथा समस्यापूर्तियां
और अन्यान्य रचनाएं संकलित हैं । इसी प्रकार अन्यान्य रचनाएं भी इस खंड में चचित हैं। सभी के साथ हिंदी अनुवाद संलग्न है। 'तुलसी मञ्जरी' प्राकृत शब्दानुशासन है। उसे भी इसी खंड के अन्तर्गत रखा है।
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