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महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण यह कृति अपने आप में एक अनूठी कृति है और एक नई विधा से लिखी गई है।
अग्नि जलती है
___ यह अतुकांत कविताओं का एक छोटा-सा संग्रह है। इसमें युवाचार्यश्री द्वारा समय-समय पर लिखित वे कविताएं हैं, जिनका प्रणयन 'स्वान्तः सुखाय' अपने अवकाश के क्षणों में किया गया है। जब युवाचार्यश्री दार्शनिक चिंतन की गहराइयों में निमज्जन कर चुकते हैं, तब मन को आनन्द से आप्लावित करने के लिए अनुभूतियों का लेखन करते हैं । वह अनायास ही काव्य बन जाता है। यह लघु संग्रह उन्हीं अनुभूतियों के वेधक शब्दों से परिमंडित है।
विजय के आलोक में
पुस्तक का प्रारंभ जिस वाक्यावलि से हुआ है, वह स्वयं अपने उद्देश्य को स्पष्ट कर देती है-'जो आत्मा की चर्या को नहीं जानता, वह दिन-चर्या को भी नहीं जानता । आत्मा की चर्या ही विजय-चर्या है। जीवन की सारी चर्याओं का स्रोत आत्म-चर्या है। उसके दो पक्ष हैं-आचार और विचार । आचार का फल विचार है । विचार का सार आचार है । आचार से विचार का संवर्द्धन होता है, पोषण मिलता है। विचार से आचार को प्रकाश मिलता है।'
जैन आचार और विचार को अनेक आयामों में अभिव्यक्त करना ही इस पुस्तक का ध्येय है। इसके आचार-पक्ष में अहिंसा, सत्य की आराधना, साधना के मानदंड आदि विषय चचित हैं और विचार पक्ष में विश्व-दर्शन, लोकस्थिति, लोकविजय आदि विषयों का प्रतिपादन हुआ है।
चालीस पृष्ठों की यह लघु पुस्तिका विचारों का भंडार है। गद्य काव्य की दृष्टि से यह एक नया प्रकार है ।
विजय यात्रा
लौकिक दृष्टि से शत्रुओं को जीतना विजय है किंतु आध्यात्मिक दृष्टि से आत्मा की साक्षात् अनुभूति ही विजय है। किंतु इसकी प्राप्ति के लिए साधक को एक लम्बी यात्रा तय करनी पड़ती है। पैरों से नहीं अपितु तप, नियम, संयम, स्वाध्याय, ध्यान, जागरूकता आदि से । इस यात्रा पर प्रस्थित साधक विजय को पाता है। वह परोक्षानुभूति के घेरे को तोड़कर प्रत्यक्षानुभूति के द्वार में प्रवेश करता है । वेदों का मर्मज्ञ इन्द्र भूति ब्राह्मण भी परोक्ष
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