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८४ चिन्तन के क्षितिज पर
तपश्चर्या, दान, ऋजुता, अहिंसा और सत्य को उस यज्ञ की दक्षिणा बतलाया।' कहा जाता है कि वे घोर आंगिरस अन्य कोई नहीं, भगवान नेमिनाथ ही थे।
तीसरा वर्णन भगवान् पार्श्वनाथ का उपलब्ध होता है । भगवान् नेमिनाथ को कुछ इतिहासकार ऐतिहासिक पुरुष मानते हैं तो कुछ प्राग्-ऐतिहासिक, परन्तु भगवान् पार्श्वनाथ को सभी ऐतिहासिक मानते हैं। उन्होंने अपने द्वारा निर्दिष्ट चातुर्याम धर्म के माध्यम से अहिंसा को जन-जीवन में व्यवहार्य रूप प्रदान किया। ____ भगवान् महावीर ने अहिंसा को ऐसा निखार दिया कि वह जन-मानस में रच-पच गई। यज्ञादि में हिंसा को मान्य करने वालों को भी 'अहिंसा परमोधर्म:' जैसे सूत्र वाक्यों का निर्माण करना पड़ा। संसार आज भगवान् महावीर का आभारी है कि उन्होंने उसे आत्म-कल्याण और जीवन-व्यवहार के लिए एक प्रशस्त एवं शाश्वत धर्म का मार्ग-दर्शन दिया।
वर्तमान के लिए अहिंसा-धर्मियों के लिए वर्तमान काल एक परीक्षा का काल है। चारों ओर से बढ़ रही हिंसा का निरसन वे तभी कर सकते हैं जब पहले स्वयं के जीवन में उसे गंभीरता से लागू करें। जिस धर्म ने पेड़-पौधों तक अपनी दया का विस्तार किया था, आज उसमें न्यूनता दृष्टिगत होने लगी है। पशु-पक्षियों के प्रति निर्दय व्यवहार करने वालों की संख्या कम नहीं है। वास्तविकता तो यह है कि मनुष्य के प्रति भी सदय विचार नहीं किया जा रहा है। उसकी हत्या भी आज किसी को जल्दी से कंपित नहीं करती। शोषण, मिलावट, प्रवंचना आदि के द्वारा मनुष्य ही मनुष्य के प्रति जो अपराध कर रहा है, वह सब हिंसा का ही तो एक अंग है । अहिंसा को समद्ध देखने की कामना करने वालों के लिए यह आत्म-निरीक्षण का समय है। दूसरों की पीड़ा को अपनी पीड़ा के समान देखने वाले ही अहिंसा की भावना को आगे बढ़ा सकते हैं।
१. छान्दोग्य उपनिषद् ३, १७
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