________________
समन्वय की ओर ८१
वे अन्तिम नहीं थे, फिर भी समन्वय की प्रथम सामूहिक अभिव्यक्ति के द्योतक होने के साथ-साथ वातावरण में एक नया उत्साह और नयी प्रेरणा उत्पन्न करने वाले थे । यद्यपि वह घोषणा परिणति के समय परिपूर्णता के साथ लागू नहीं की जा सकी, फिर भी यह आशा तो बंधी ही कि अगली बार जो निर्णय किये जायेंगे, उनमें उन बातों पर भी विस्तृत विचार किया जायेगा, जिन पर पिछली बार नहीं किया
1
जा सका ।
भगवान् महावीर द्वारा उपदिष्ट स्याद्वाद की छत्र-छाया में पूर्वाचार्यों द्वारा परिपुष्ट समन्वय की इस भावना को आगे बढ़ाने का पवित्र कर्त्तव्य और उत्तरदायित्व वर्तमान जैनाचार्यों का तो है ही, परन्तु साथ में श्रमण वर्ग तथा श्रावक वर्ग का सहयोग भी उतना ही अपेक्षणीय है । आचार्यों के निर्णय को वास्तविकता में परिणत करने का उत्तरदायित्व वस्तुतः उन्हीं पर होता है । कार्य
गुरुता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि यह सब तत्काल होने वाला नहीं है, फिर भी इसकी आवश्यकता बतलाती है कि इसमें जितनी शीघ्रता की जायेगी, जैन समाज का उतना ही अधिक कल्याण होगा । कठिन से कठिन कार्य भी दृढ़ निश्चय और व्यवस्थित क्रम से करने पर सहज हो जाता है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org