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७६ चिन्तन के क्षितिज पर
का विषय बनने की जितनी योग्यता है, उतनी ही परद्रव्यादि की अपेक्षा से 'नास्ति' शब्द का विषय बनने की भी। यही कारण है कि घड़े का स्वरूप विधि और निषेध-दोनों से प्रकट होता है। विचार-क्षेत्र में बहुमूल्य अवदान उपर्युक्त 'सत्-असत्' अर्थात् 'अस्ति-नास्ति' अर्थात् 'विधि-निषेध' के आपेक्षिक कथन के समान ही वस्तु में सामान्य-विशेष, एक-अनेक आदि विभिन्न धर्मों का भी आपेक्षिक अस्तित्व समझना चाहिए।
भगवान् महावीर ने जगत् को जीवन-क्षेत्र में अहिंसा की जितनी बहुमूल्य देन दी है, विचार-क्षेत्र में भी 'स्याद्वाद' की उतनी ही बहुमूल्य देन दी है। अहिंसा जीवन को उदार और सर्वांगीण बनाती है तो स्याद्वाद विचारों को। एकांगी विचार अपूर्ण और वास्तविकता से दूर होता है, जबकि सर्वांगीण विचार पूर्ण और वास्तविक होता है।
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