________________
स्याद्वाद क्या है ? ७३
वस्तु-प्रतिपादन में भाषा का प्रयोग ठीक से हो और ज्ञाता उसका अभिप्राय ठीक समझे । प्रतिपाद्य के प्रति किसी भी प्रकार का अन्याय तभी रुक सकता है, जबकि प्रतिपादक अपने आग्रह और एकान्त से विमुक्त होकर यथावस्थित कथन करे। अयथार्थ कथन वैचारिक हिंसा है तो यथार्थ कथन अहिंसा । प्रमाण-वाक्य और नयवाक्यमय स्याद्वाद की इस कथन प्रणाली को वैचारिक अहिंसा का प्रतीक कहा जा सकता है, क्योंकि वह प्रणाली ही कथित और कथनावशिष्ट स्वभावों को, यदि वे वस्तु में प्रमाणित होते हैं तो समान रूप में स्वीकार करती है। यहां तक कि परस्पर विरोधी स्वभावों को भी जिस-जिस अपेक्षा से वे वहां प्राप्त होते हैं, उसउस अपेक्षा से स्वीकार करना इस प्रणाली को अभीष्ट है। यदि ऐसा न किया जाए तो दार्शनिक पहलुओं का समाधान तो दूर रहा, व्यवहार भी नहीं चल सकता। अपेक्षावाद : कुछ निदर्शन भिन्न-भिन्न अपेक्षाएं भिन्न-भिन्न जिज्ञासाओं के उत्तर से स्वयं फलित होती हैं। एक वस्त्र विशेष के लिए पूछने वालों को हम उनकी जिज्ञासाओं के अनुसार ये भिन्न-भिन्न उत्तर दे सकते हैं
(१) यह वस्त्र रूई का है। (२) यह वस्त्र मिल का है। (३) यह वस्त्र नरेन्द्र का है। (४) यह वस्त्र पहनने का है। (५) यह वस्त्र पांच रुपये का है।
अब बतलाइए यह वस्त्र किस-किस का समझा जाए? किसी एक का या पांच का ? इन पांच कथनों में से कोई भी कथन ऐसा नहीं, जिसे अप्रमाणित कहा जा सके । पांचों ही बातें भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से उसी एक वस्त्र के विषय में सत्य हैं। पांच ही क्यों? दो गज का है, भारत का है, सन् १९५५ का है आदि और भी अनेक बातें उसके विषय में कही जा सकती हैं और सबकी सब समान रूप से सत्य हो सकती हैं। इनमें से प्रत्येक कथन वस्त्र सम्बन्धी कोई-न-कोई जानकारी देता है। एक वाक्य में जो बात कही गई है, दूसरे प्रत्येक वाक्य में उससे भिन्न बात कही गयी है। फिर भी इनमें परस्पर कोई विरोध नहीं है। विरोध इसलिए नहीं है कि प्रत्येक की अपेक्षाएं भिन्न हैं । वह वस्त्र उपादान-कारण की अपेक्षा से रुई का, तो सहकारी-कारणों की अपेक्षा से मिल का और स्वामित्व की अपेक्षा से नरेन्द्र का, कार्यक्षमता की अपेक्षा से पहनने का तथा मूल्य की अपेक्षा से पांच रुपये का है। प्रश्नकर्ताओं की ये जिज्ञासाएं-यह वस्त्र रुई का है या रेशम का ? मिल का है या हाथ का? नरेन्द्र का है या वीरेन्द्र का? पहनने का है या ओढ़ने का? कितने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org