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५८ चिन्तन के क्षितिज पर
सर्वोत्कृष्ट अनुशासन अनुशासन किसी पर थोपा नहीं जा सकता, परन्तु अनुशासन के प्रति श्रद्धा उत्पन्न की जा सकती है। तब वह अनुशासन ऊपर से आया हुआ नहीं रह जाता । स्वयं व्यक्ति उसे अपने लिए हितकर एवं आवश्यक मानकर स्वीकार करता है। वैसा अनुशासन चाहे राजसत्ता की ओर से, चाहे समाज की ओर से तथा चाहे धर्म की ओर से आये, वस्तुतः वह उसका अपना बन जाता है। अपना अनुशासन पालने में कभी किसी को कोई बाधा नहीं होती । अध्यात्म की भाषा में ऐसे अनुशासन को आत्मानुशासन कहा जाता है । यही सर्वोत्कृष्ट अनुशासन है । इसकी स्थापना से अनुशासन-हीनता का प्रश्न सदा के लिए समाहित हो जाएगा।
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