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प्राण : एक व्यावहारिक विश्लेषण ४७ संवलित करते हुए पूर्ण जागरूकता रखें और ऊर्जा को ऊर्ध्वता की ओर ले जाएं। इसी से चेतना का ऊर्वीकरण होता है। चेतना का ऊर्वीकरण ही आध्यात्मिक प्रगति का मापदण्ड है।
मूच्छित या सुप्त चेतना को सावधान या जागृत करने के लिए ही प्राणायाम का अभ्यास आवश्यक है। सामान्य रूप से तो यह अभ्यास स्वतः ही किया जा सकता है, पर विशेष अभ्यास के लिए किसी योग्य व्यक्ति के मार्ग-दर्शन में ही किया जाना लाभदायक है, क्योंकि अविधि से किए जाने पर कई प्रकार की शारीरिक एवं मानसिक क्षतियों की भी सम्भावना रहती है।
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