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४६ चिन्तन के क्षितिज पर
श्वास के प्रकार
योग की भाषा में श्वास के तीन प्रकार हैं
१. पूरक २. रेचक ३. कुम्भक
पूरक अर्थात् वायु को अन्दर खींचना, रेचक अर्थात् प्रश्वास के रूप में वायु को बाहर फेंकना, कुम्भक का अर्थ है--श्वास का संयम करना।
प्राण-शक्ति का उपयोग वायु के अनेक नामों में एक है-महाबल । वस्तुतः वायु के बल का अनुमान लगा पाना कठिन है। भीम को वायु-पुत्र कहा जाता था। उनका शारीरिक बल अपार था, दूसरे व्यक्ति जिस वस्तु को हिला भी नहीं सकते थे, भीम उसे उठाकर दूर फेंकने की शक्ति रखते थे । व्यक्ति किसी भारी वस्तु को उठाता है तब पहले सहज ही अपने में पूरा श्वास भरता है । कुम्भक अवस्था में ही भार उठाना उसके लिए सरल होता है। आचार्य सिद्धसेन दिवाकर कहते हैं-'बल-प्रकर्षः पवनेन वर्ण्यते' अर्थात् बल-प्रकर्षता की तुलना वायु से की जाती है । वायु-ग्रहण से अजित शक्ति के आधार पर व्यक्ति छाती पर हाथी को खड़ा करवा सकता है। छाती पर रखी शिला को हथौड़ों से तुड़वा सकता है। कार से बंधा रस्सा पकड़कर पूरे वेग से दौड़ाए जाने पर भी उसे एक इंच भी आगे सरकने से रोक सकता है। ये सब चमत्कार कुछ ही दशक पूर्व प्रो० राममूर्ति दिखला चुके हैं। ये सब प्राणायाम द्वारा प्राप्त शक्ति के स्थूल एवं भौतिक चमत्कार हैं। यही शक्ति जब आध्यात्मिकता के साथ जुड़ती है तभी वास्तविक साधना का क्रम प्रारम्भ होता है। प्राण-शक्ति के जागरण का यही उपयोग वांछनीय है । उसे चमत्कारों तथा प्रदर्शनों में खपाना उसका दुरुपयोग है। वह तो करने वाले पर निर्भर है कि अपनी अजित शक्ति का उपयोग किस प्रकार से करे। देश की स्वतन्त्रता से पूर्व की घटना है। कलकत्ता में कांग्रेस का अधिवेशन था। किसी विषय पर नेताओं में मतभेद था। बहस चली, गरमा-गरमी हुई और फिर हाथापाई की नौबत आ गयी। एक-दूसरे पर प्रहार करने में जूतों और कुसियों का प्रयोग तो हुआ ही, यहां तक कि सूत कातने के काम आने वाली तकली भी प्रहार का साधन बन गयी। इसके विपरीत गोबर एवं कड़ेकरकट आदि से जो खाद बनायी जाती है, वह मलिन पदार्थों का सदुपयोग है।
आवश्यक है मार्गदर्शन प्रकृति प्रदत्त प्राण-शक्ति का सदुपयोग यही है कि उसे नियंत्रित और लयबद्धता से
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