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मानसिक शान्ति और धारणाओं का रंग
शान्ति क्या है ?
शान्ति मनुष्य के लिए काम्य है । अशान्ति आग के समान होती है । वह दूर-दूर तक के वातावरण को उत्तप्त बना डालती है । उत्तप्त वातावरण में रहकर कभी कोई शीतल या शान्त कैसे रह सकता है ? भगवान् महावीर ने कहा है- 'संति मग्गं ब बहुएं' अर्थात् 'शान्ति के मार्ग की उपबृंहणा करो' । प्रश्न किया जा सकता है कि शान्ति क्या है और उसकी उपबृंहणा कैसे की जा सकती है ? उत्तर हैउद्विग्नता - हीन मानसिक स्थिति का नाम शान्ति है, उसकी उपबृंहणा हम अपने मन की धारणाओं को बदल कर या उसे सुस्थिर बनाकर कर सकते हैं ।
अशान्ति वास्तव में नहीं होती है तो भी अपनी अज्ञानता के कारण हम उसे मान लेते हैं और तब सारा जीवन अशान्त हो जाता है ।
धारणाओं का रंग
जब-जब उद्वेग की हवा चलती है, तब-तब हमारे मन का सरोवर आन्दोलित और उद्वेलित हो उठता है । उद्वेग हमारी धारणाओं का आधार पाकर पनपता है । कोई भी घटना या स्थिति हमारी धारणाओं के अनुरूप ही हमारे मन पर प्रभाव छोड़ती है । दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि हमारी प्रायः सभी अनुभूतियां हमारी धारणाओं के रंग में रंगी होती हैं । फलतः हमें अनुभूति का सत्य नहीं, किन्तु धारणा का सत्य प्राप्त होता है, जो कि बहुधा असत्य ही होता है । अग्रोक्त घटना के प्रकाश में इसे सुस्पष्ट समझा जा सकता है। दो यात्री रेल के एक डिब्बे में बैठकर यात्रा कर रहे थे । एक खिड़की के निकट बैठा था तो दूसरा उससे कुछ दूर डिब्बे के बीच में । गाड़ी ने रफ्तार पकड़ी तो बीच वाले व्यक्ति ने उठकर खिड़की को बन्द कर दिया। किनारे वाला व्यक्ति दो मिनट तो चुप रहा। फिर उसने खटाक से खिड़की को खोल दिया ।
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