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सामर्थ्य और उसका विश्वास ४१
बड़ा संकोच होता है। वस्तुतः अनन्त सामर्थ्य की अनुभूति के लिए अनन्त विश्वास की भी अपरिहार्य आवश्यकता होती है। सामर्थ्य और उसके विश्वास की सममात्रा प्रायः उपलब्ध नहीं होती, इसीलिए व्यक्ति के सामर्थ्य का काफी महत्त्वपूर्ण अंश निष्फल चला जाता है। समयोग्यता वाले दो व्यक्तियों में भी आत्म-विश्वास की तरतमता के कारण ही इतना बड़ा अन्तर हो जाता है कि एक बहुत कुछ कर सकता है, दूसरा कुछ भी नहीं । वस्तुतः शक्ति के विश्वास में ही शक्ति निहित होती है । उसके अभाव में सबसे सबल व्यक्ति भी सबसे निर्बल रह जाता है। क्षोभ और अविश्वास की परिणति महारथी कर्ण अर्जुन से किसी प्रकार कम नहीं था, परन्तु स्वयं उसी के सारथी शल्य ने रण-क्षेत्र में लगातार उसके आत्म-विश्वास को घटाने का प्रयास किया। उसने कहा कि अर्जुन एक महान् योद्धा है । तुम उसकी बराबरी कभी नहीं कर सकते, तुम उसे किसी भी प्रकार से जीत नहीं सकते । बार-बार दुहराये गये उक्त वाक्यों से कर्ण मानसिक स्तर पर टूट गया। उस स्थिति में न केवल उसके रथ का चक्र ही धंस गया, अपितु उसके मन का चक्र भी क्षोभ और अविश्वास के कीचड़ में धंस गया । न वह अपने रथ का उद्धार कर पाया और न मन का। असमंजसता की उसी अवस्था में अर्जुन के बाणों ने उसे वहीं ढेर कर दिया। आत्मविश्वास की फलश्रुति इसके विपरीत हमने अपने युग में देखा है कि महात्मा गांधी ने जब निरस्त्र भारतीयों के आत्मविश्वास को जगाया तो दुनिया का सबसे बड़ा ब्रिटिश साम्राज्य सशस्त्र सेनाओं की विद्यमानता में भी भू-लुंठित हो गया। अहिंसा द्वारा हिंसक-शक्ति को पराजित करने का आत्म-विश्वास जहां भारत को स्वतंत्र करा गया, वहां संसार के सम्मुख एक नया मार्ग-दर्शन भी प्रस्तुत कर गया। यद्यपि पहले-पहल उस आत्मविश्वास को एक पागलपन ही समझा गया था, परन्तु उसकी कार्य-परिणति ने अनेक सम्भावनाओं के द्वार खोल दिये।
आत्मविश्वास की कमी : परिणाम असफलता, पराजय, अपूर्णता आदि आत्मविश्वास की कमी के ही विभिन्न परिणाम हैं । यदि उसकी परिपूर्ण खुराक व्यक्ति को मिलती रहे, तो भावना की कोई कली फूल बनकर सुरभि बिखेरने से पूर्व कभी मुरझा नहीं सकती। आत्मविश्वास को एक प्रकार का संजीवन रस ही मानना चाहिए। उसके कुछ बिंदु भी भावना के स्तर पर मत व्यक्ति को जीवित कर देते हैं । इसी प्रकार से उसका अभाव जीवित को भी मत बना डालता है। आत्म-हत्या करने वाले प्रत्येक व्यक्ति का आत्म
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