________________
४२ चिन्तन के क्षितिज पर
विश्वास ही समाप्त हो चुका होता है, अन्यथा कोई स्वयं मरना कैसे चाह सकता
पूर्ण निर्णय : पूर्ण विश्वास मनुष्य के आत्मविश्वास में घटाव-बढ़ाव आता रहता है, इसीलिए उसकी कार्यशक्ति तथा सफलता में भी घटाव-बढ़ाव आता रहता है । पूर्ण आत्म-विश्वास से ऐसी सर्जन-शक्ति का उदय होता है, जो कभी किसी कार्य को अपूर्ण नहीं रहने देती। हम क्या हैं—इस चिन्तन में अधिक शक्ति खपाने की आवश्यकता नहीं, किन्तु हमें क्या बनना है—यह निर्णय कर पूर्ण विश्वास के साथ उसी ओर बढ़ने में सम्पूर्ण शक्ति लगा देनी चाहिए। अधूरा निर्णय अनिर्णय की कोटि में आता है और अधूरा विश्वास अविश्वास की कोटि में । इसलिए पूर्ण निर्णय और पूर्ण विश्वास ही सिद्धि-दायक हो सकता है।
हर सामर्थ्य और सामर्थ्य के हर विश्वास के साथ उच्च आदर्श का योग होना आवश्यक है, अन्यथा मानवीय दुर्बलताओं के कारण व्यक्ति उनका विनाश कार्यों में भी प्रयोग कर सकता है, परन्तु वह प्रयोक्ता का ही दोष माना जाएगा, सामर्थ्य और उसके विश्वास का नहीं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org