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प्रगति के सोपान ३६
सहायक हो सकता है, तो वह तुम्हीं हो सकते हो, अन्य कोई नहीं। एक बार चारों ओर से हताश हुए एक व्यक्ति ने एक मनोवैज्ञानिक से सहायता मांगी। मनोवैज्ञानिक ने उसकी सारी स्थिति का अध्ययन करने के पश्चात् कहा-'तुम्हारी पूरी बात सुनने और उस पर विचार करने के पश्चात् मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि मैं तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकता परन्तु मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूं, जो निश्चित ही तुम्हारी सहायता कर सकता है और वह उसे दूसरे कमरे में ले गया। वहां एक आदमकद दर्पण पर से पर्दा उठाकर उसी का प्रतिबिम्ब दिखलाते हए मनोवैज्ञानिक ने कहा---'यही वह आदमी है, जो तुम्हारी सहायता कर सकता है। संसार भर में इसके अतिरिक्त अन्य कोई भी तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकता।' ___ वह व्यक्ति एक क्षण के लिए उस प्रतिबिम्ब को देखता रहा और फिर चुपचाप चला गया। कालान्तर में वही व्यक्ति एक सुप्रसिद्ध व्यापारिक संस्थान का अध्यक्ष वना । उस व्यक्ति को विनाश के द्वार से खींचकर सफलता के उच्चासन पर ला बिठाने वाला अन्य कोई नहीं, अपनी शक्ति का ज्ञान और तदनुकूल प्रवर्तन ही था।
बिना सोचे-समझे सिर झुकाकर दूसरे के पीछे चल पड़ना भेड़-बकरियों का काम है। सिंह ऐसा कभी नहीं करता। यदि मनुष्य भेड़-बकरियों की श्रेणी में नहीं जाना चाहता, तो उसके लिए वह परम आवश्यक है कि वह अपने सिंहत्व को समझे, अपनी क्षमताओं तथा विशेषताओं को पहचाने और फिर उनके निखार में पूर्ण निष्ठा से लगे। प्रगति के इन्हीं सोपानों पर चरण रखते हुए ऊपर उठा जा सकता है।
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