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प्रगति के सोपान
अस्तित्व की पृथकता मैं जहां ठहरा हुआ हूं, उस मकान की दाहिनी भीत से सटे हुए दो वृक्ष खड़े हैं, जो कि उस दुमंजिले मकान की छत पर झुक-झुक आये हैं । सहस्रों-सहस्रों पत्तियों से भरी उनकी शाखाएं हवा में यों झूमती हैं, मानो किसी के लिए पंखा झल रही हों। मैं उन्हें देखता हूं और मन-ही-मन आश्चर्य से भर जाता हूं कि प्रकृति ने कितने करीने से उन सब पत्तियों को समझाकर यथास्थान लगाया है। मैं कई बार उनके समीप चला जाता हूं और ध्यान से देखता हूं, तो लगता है कि जो पत्तियां दूर से बिलकुल समान दिखाई देती हैं, वे वस्तुतः समान नहीं हैं । खोज की दृष्टि से देखने, सोचने और समझने के पश्चात् मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि प्रकृति के विशाल राज्य में किन्हीं दो पत्तियों की पूर्ण समानता असम्भव है। समानता के विशाल नीलाकाश में भी असमानता विशेषता के असंख्य तारक यत्र-तत्र चमकते हुए अपने पृथक् अस्तित्व की घोषणा करते दृष्टिगत हो ही जाएंगे। केवल पत्तियों के लिए ही क्यों, प्रकृति की हर वस्तु के लिए यही सिद्धान्त अविकल रूप से लागू होता है।
सूक्ष्म निरीक्षण : निष्कर्ष कई वर्ष पूर्व मैंने युगल-जन्मा भाइयों में से एक को देखा था। परिचय हआ तो निकटता भी आयी। पचासों बार वह मेरे पास आया होगा । कुछ दिनों तक मैं उसके मकान पर भी ठहरा था, लेकिन अगले ही वर्ष जब उसके दूसरे भाई को देखा तो मुझे उसी का भ्रम हो गया। एक बार नहीं, अनेक बार दोनों के अन्तर को पहचानने में मैंने भूल की । आखिर दोनों को एक साथ देखकर पार्थक्य खोजने का प्रयास किया, तो लगा कि दोनों की आकृतियों में काफी समानता के साथ-साथ काफी असामनता भी है। इतने दिनों तक मेरी आंखों ने जो कुछ देखा था, वह मात्र
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