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३६ चिन्तन के क्षितिज पर
भी उसे अक्षम और अकिंचित्कर मानकर उपेक्षित किया जा रहा है। लोगों के मानसिक धरातल पर जमे हुए उसके पैरों को डगमगा देने के लिए उसे 'कायरता' तक की संज्ञा से विभूषित किया जा रहा है।
चारित्रिक उत्थान का स्वप्न देखने वाले व्यक्तियों के लिए यह आवश्यक है कि वे हर व्यक्ति में सत्य और अहिंसा का विश्वास जागृत करें। कुछ मानवीय कमजोरियों के कारण आज जो यह भावना बल पकड़ती जा रही है कि शान्ति युग में ही सत्य और अहिंसा कारगर हो सकती है, अन्यत्र नहीं, उसे हटाया जाए। जनता के समक्ष प्रयोगात्मक ढंग से ऐसे उदाहरण पेश किये जाएं कि जो आध्यात्मिक क्षेत्र में ही नहीं, किन्तु राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में भी पूर्ण रूप से समस्या का समाधान उपस्थित कर सकते हों।
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