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मनुष्य और उसकी डगमगाती निष्ठा
मन ही मनुष्य है संसार की सबसे बड़ी समस्या चारित्रिक अभाव है । यह केवल भारत में ही नहीं किन्तु प्रायः सभी राष्ट्रों में प्रकारान्तरों से दृष्टिगत हो रहा है। चरित्र का निर्माण मनुष्य के मन से सम्बन्ध रखता है । जिस प्रकार के विचार उसके मन में उत्पन्न होने लगते हैं, धीरे-धीरे वैसे ही उसके संस्कार बन जाते हैं, इसीलिए 'मानसं विद्धि मानवं' इस ऋषि वाक्य में कहा गया है कि मन ही मनुष्य है। जिन चारित्रिक गुणों को आदर्श के रूप में सम्मुख रखा जाता है और बार-बार उन पर चिन्तनमनन किया जाता है, कालान्तर में उनका अनुसरण भी सम्भव होने लगता है। ___ कोई व्यक्ति यदि यह बतला सके कि वह किन व्यक्तियों को अपना आदर्श मानता है तो उसी के आधार पर प्रायः यह भी जान लिया जा सकता है कि वह किस चारित्रिक धरातल पर जी रहा है । सिनेमा अभिनेत्रियों की गतिविधियों पर जागरूकता से ध्यान रखने वाले व्यक्ति का तथा किसी सत्पुरुष की गतिविधियों पर मनन करने वाले व्यक्ति का मानसिक धरातल एक होना सम्भव नहीं है, फिर भी मानवीय सामर्थ्य में एक विशेषता बहुत ही आशाप्रद रही है-वह अपने मानसिक स्तर को सावधान होकर बदल भी सकता है । यह तो सम्भव नहीं है कि सभी व्यक्तियों का मानसिक धरातल एक समान समुन्नत हो जाए और वे सच्चरित्र के धनी हो जाएं, किन्तु उतना ही असम्भव यह भी तो है कि सभी व्यक्तियों का मानसिक धरातल निम्न हो जाए और वे दुश्चरित्र ही बन जाएं। जब तक यह संसार है तब तक चारित्रिक धरातल की यह विषमता विद्यमान रहेगी, परन्तु सच्चरित्रता और दुश्चरित्रता में से जब जिसका प्राबल्य होगा, युग की स्थिति उसी के अनुरूप अच्छी और बुरी होती रहेगी। देवत्व और पशुत्व मनुष्य में देवत्व और पशुत्व—ये दोनों ही भाव विद्यमान रहते हैं। किसी युग में
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