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जीवन के तीन सूत्र ३१
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जो अपने को खोदने में लगे हैं, वे अपने लक्ष्य की सिद्धि में लगे हुए हैं । वे जीवन को जीने में लगे हुए हैं । जो इस खुदाई से बचकर निकलते हैं, वे जीवन को से बचकर निकलते हैं । वे फिर जीवन का केवल भार ढोते हैं । जिनके सम्मुख अपना कोई लक्ष्य नहीं होता, दिशा नहीं होती और मंजिल भी नहीं होती, उनके सम्मुख केवल भटकन होती है, अनन्त भटकन, जिसमें लगता तो है कि गति हो रही है, परन्तु पहुंच कहीं भी नहीं होती । तेली का बैल सारे दिन चलकर भी कहीं नहीं पहुंच पाता। वहीं रहता है, जहां से चलना प्रारम्भ करता है ।
वर्तमान का आदर
जीवन को जीने की ओर प्रवृत्त होने से पूर्व उसकी भूमिका के रूप में कुछ तथ्यों को जान लेना आवश्यक है । जिन्हें मैं जीवन के सूत्र कहना पसन्द करूंगा । पहला सूत्र है — वर्तमान में जीना । अतीत बीत चुका होता है और भविष्य अनागत । एक की स्मृति और दूसरे की कल्पना ही की जा सकती है । मूलतः दोनों ही असत् हैं, अविद्यमान हैं । सत् या विद्यमान तो केवल वर्तमान ही होता है । उसे सार्थक बनाना आवश्यक है । वर्तमान जब मनुष्य के सम्मुख उपस्थित होता है, तब यदि मनुष्य उसे अतीत या भविष्य के चिन्तन की यान्त्रिक आदत में खोया हुआ मिले, तो वह चुपचाप आगे बढ़ जाने के अतिरिक्त और क्या करे ? वह चला जाता है । मनुष्य तब प्रायः पीछे से उसके विषय में चिन्ता करता है कि वह समय निष्फल चला गया। इस प्रवृत्ति को रोकना है । वर्तमान को सफल बनाना है। उसका एक ही तरीका है कि वर्तमान में जीया जाये । वर्तमान का आदर करना सीखे बिना अतीत का ही आदर किया जा सकता है और न अनागत का ही ।
सहजता
दूसरा जीवन सूत्र है - सहजता से जीना । मनुष्य का प्रायः सारा जीवन औपचारिकता में ही बीतता है। एक मुखौटा सदा लगाये रहना पड़ता है ताकि उसका मूल रूप किसी के सम्मुख उद्घाटित न होने पाये । धीरे-धीरे वही स्वभाव हो जाता है । मुखौटा मूल हो जाता है और मूल विस्मृत | अपने आपके सहज रूप को प्रकट होने देने की आवश्यकता है । यदि वह विकृत भी हो तो भी उसी रूप को प्रकट होने देना चाहिए । ढकने से विकृति दूर नहीं हो पाती । उल्टा यह विश्वास होने लगता है कि हमारी विकृति का किसी को कोई पता नहीं चल सकेगा। सभी इस मुखौटे को ही मूल रूप मान लेंगे । परन्तु इस भ्रान्ति में नहीं रहना चाहिए। कोई जाने या न जाने, स्वयं तो स्वयं को जानता ही है । स्वयं से छिपकर मनुष्य कहीं जा नहीं सकता। स्वयं को स्वयं से छिपा नहीं सकता । इसीलिए सहजता को खुलने देना है। उससे अपने को अच्छी तरह से जानने और
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