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________________ ३० चिन्तन के क्षितिज पर बुढ़िया ने हाथ से अपने घर की ओर संकेत करते हुए कहा--"वहां घर के आंगग में खोई थी।" युवक ने साश्चर्य कहा--"वहां खोई थी, तब यहां क्यों खोज रही हो?" । बुढ़िया बोली-“वहां अंधेरा था, यहां प्रकाश है। जब यहां प्रकाश में भी नहीं मिल रही है, अंधेरे में तो वह मिलती ही क्या ?" युवक ने समझाते हुए कहा---- "यहां तो वह जीवन भर खोजने पर भी नहीं मिलेगी। जहां खोई है, वहीं प्रकाश करके खोजो।' ___ यह एक कहानी है । पता नहीं, सत्य है या काल्पनिक, परन्तु इसका निष्कर्ष सनातन सत्य है । शक्ति और आनन्द को अपने से बाहर खोजने वाले उस बुढ़िया जैसे ही हैं। उनके घर में वैसे ही अंधेरा है, जैसा बुढ़िया के घर में था । वे भी बढिया की ही तरह शक्ति और आनन्द की खोज वहां करते हैं, जहां उनका अस्तित्व ही नहीं होता। जिन 'खोदा', तिन पाइया शक्ति और आनन्द अपने में हैं अवश्य, परन्तु सहज सुलभ नहीं हैं। बहुत लम्बे समय से उन पर आवरण चढ़ते रहे हैं, अतः उनका अस्तित्व बाह्य दृष्टि से ओझल हो चुका है । अन्तर-दृष्टि सबको सुलभ नहीं होती, अतः सबको यह विश्वास प्राप्त नहीं है कि स्वयं उनके अन्दर शक्ति और आनन्द का अनन्त स्रोत प्रवाहित है। धरती के नीचे बहने वाले पानी के स्रोत की ही तरह उसकी स्थिति अदृश्य होते हुए भी सन्देह से परे है। कहा जाता है कि 'जिन खोजा, तिन पाइयां' परन्तु यहां कहना चाहिए---'जिन खोदा, तिन पाइया।' जिसने धरती को खोदा, उसे पानी अवश्य मिला, परन्तु उसके लिए तब तक खोदते जाना आवश्यक होता है, जब तक कि पानी मिल न जाए। मिट्टी, कंकर और चट्टानों से डरने की आवश्यकता नहीं, रुकने की भी आवश्यकता नहीं। उन्हें तो तोड़ना ही होता है, चाहे आज, चाहे कल, चाहे फिर कभी। इसी तरह शक्ति और आनन्द के स्रोत को पाने के लिए स्वयं को खोदना पड़ता है । बीच में पड़ने वाली अज्ञान की चट्टानों की पर्तों को तोड़ना पड़ता है, पूर्वाग्रहों की मिट्टी के ढेर हटाने पड़ते हैं। इस प्रकार निरन्तर अपनी गहराई में पैठता हुआ मनुष्य एक दिन अनन्त शक्ति और अनन्त आनन्द के स्रोत को कहीं बिना भटके अपने में ही पा लेता है । वही मंजिल, वही मुक्ति यह पा लेना कोई बाहर से आने वाली वस्तु के पा लेने जैसा नहीं है। यह तो अपने ही घर में विस्मृत अपनी वस्तु को पा लेने जैसा है। वस्तुतः यह अपने में अपने को ही पा लेना है। अपने आपको पा लेना ही मंजिल है, मुक्ति है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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