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जीवन के तीन सूत्र
शक्ति-भण्डार
जन्म एक बात है, परन्तु जीवन बिल्कुल दूसरी। जन्मते सभी हैं, परन्तु जीवन को जीने वाले बिरल ही होते हैं, अधिकांश तो जीवन को ढोते हैं। उसी प्रकार जैसे मुर्दे को ढोया जाता है या भार को ढोया जाता है। सचमुच ही अनेक लोगों की दृष्टि में जीवन एक भार बन गया है। अनचाहा भार, जिसे विवशता पूर्वक ढोना पड़ता है । वे यथाशीघ्र उससे छुटकारा पाने को आतुर हैं। वे नहीं जानते कि जीवन अनन्त शक्ति और अनन्त आनन्द का भण्डार है । जिस शक्ति और आनन्द को आज तक उन्होंने बाहर खोजा है, वह बाहर न होकर अपने ही अन्दर है । जो जहां नहीं है, वहां उसकी खोज निरर्थक है, उसे निराशा ही हाथ लगती है। 'कांख में छोरा नगर में ढिंढोरा' की कहावत ऐसे ही कार्यों के लिए प्रचलित है।
वस्तु कहीं, खोज कहीं एक बुढ़िया अपने फटे वस्त्र को सी रही थी। अचानक सूई हाथ से छट गई और खो गई। संध्या का समय था । अंधेरा हो चुका था। बुढ़िया ने सोचा, अंधेरे में खोजने से कोई लाभ नहीं, प्रकाश में खोजूं, तभी वह मिलेगी। घर में प्रकाश करने के बजाए उसने सड़क पर जल रही बिजली के प्रकाश में खोजना प्रारम्भ किया। वह वहां खोजती रही, खोजती रही, किन्तु सूई जब वहां थी ही नहीं, तब मिलती कैसे?
मार्ग से गुजरते हुए एक युवक का ध्यान बुढ़िया की परेशानी की ओर गया। उसने पास में आकर पूछा--"क्या खो गया है, बूढ़ी अम्मा ?"
बुढ़िया ने उसी परेशानी के साथ कहा-"सूई खो गई है, बेटा ! बहत समय से खोज रही हूं, परन्तु मिल ही नहीं रही है।"
युवक बोला-"तुम ठहरो । मैं खोज देता हूं। युवक ने भूमि पर इधर-उधर दृष्टि घुमाते हुए पूछा-"कहां खोई थी अम्मा ?"
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