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________________ चरित्र-विकास २७ साहूकार अकड़ा और आंखें लाल कर बोला-'मैं कुछ नहीं जानता । मुझो आज ही रुपये देने होंगे।" उसका हाथ पकड़ कर मरोड़ दिया, गालियां दी और दो-चार थप्पड़ जड़ते हुए कहा-'अबकी बार रुपये नहीं लाया तो जान निकाल दूंगा, हरामजादे की।' गरीब व्यक्ति गालियां सुनकर और मार खाकर भी गिड़गिड़ाया, हाथ जोड़े, माफी मांगी और शीघ्र ही पूरे रुपये ला देने का वचन देकर चला गया। ___ संयोग वश एक तीसरा व्यक्ति वहीं कुछ दूर खड़ा हुआ उन दोनों की बातें सुन रहा था। वह थोड़ा तेज चलकर उस गरीब व्यक्ति से मिला और पूछा'तुम्हारा क्या नाम है ?' गरीब ने कहा-'घसीटा।' वह व्यक्ति ठहाका मारकर हंस पड़ा और बोला-“यही बात है कि तुम इस प्रकार गालियां सुनते हो और मार खाते हो। अपने आपको घसीटा मानने वाले हर व्यक्ति की यही दशा होती है । परन्तु यह तो बतलाओ कि जब तुम्हारा हट्टाकट्टा शरीर है, मजबूत मांस-पेशियां हैं, आंखों में लाली है, फिर तुम किसी की गालियां क्यों सुन लेते हो और मार क्यों खा लेते हो?" घसीटा ने कहा—'सेठ मुझसे रुपये मांगता है, इसीलिए इतनी तकरार हो रही थी।' उस व्यक्ति ने कहा- 'सेठ रुपये मांगता है तो उन्हें ईमानदारी से चुकाओ, परन्तु उसके लिए यों गालियां सुनने और मार खाने की क्या आवश्यकता है ? यह सब तो तुम अपनी मानसिक दुर्बलता से ही सहन करते हो। तुम्हारा नाम तुम्हारे में आत्म-विश्वास उत्पन्न नहीं होने देता। 'घसीटा' यह भी भला कोई नाम हुआ ? शरीर से जब तुम शेर की तरह हो तो शेर की तरह ही निर्भीक रहो । मुट्ठी भर हड्डियों का ढांचा वह सेठ तुम्हारे सामने क्या चीज है ? याद रखो, आज से तुम 'घसीटा' नहीं, शेरसिंह हो।' घसीटा के मन में भी बिजली-सी कौंध गई। उसे लगने लगा, वस्तुतः ही वह घसीटा नहीं, शेरसिंह है। उसने निर्णय किया कि अब वह फिर कभी 'घसीटा' नहीं बनेगा। । उक्त घटना के कुछ दिन पश्चात् ही एक बार फिर साहकार सामने मिल गया। उसने सदा की तरह उसे ललकारते हुए कहा—'अबे ओ घसीटे के बच्चे ! अब तक भी रुपये नहीं लाया। हरामजादे ! कह रहा था न कि शीघ्र ही ला दूंगा।' साहूकार की कड़कड़ाती आवाज सुनकर भी वह सीधा खड़ा रहा। यह प्रथम अवसर ही था कि न वह गिड़गिड़ाया और न दांत निपोर कर दया की भीख मांगी। सहज भाव से बोला---'सेठ साहब ! अब मैं घसीटा नहीं, शेरसिंह हूं । रुपये हाथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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