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________________ २४ चिन्तन के क्षितिज पर विचारधारा और आचार कहा जाता है कि व्यक्ति का जीवन उसके चिन्तन के अनुरूप ही बनता है । जैसी विचारधारा होती है, वैसे ही आचार में मनुष्य ढलता चला जाता है । हर आचार के पूर्व में विचार की शक्ति काम करती रहती है । विचार मजबूत हो तो व्यक्ति IT जीवन मजबूत बन जाता है । विचार शिथिल और निर्बल हो तो जीवन भी निर्बल और शिथिल ही रहता है । मनोवैज्ञानिक तो यहां तक कहते हैं कि अधिकांश शारीरिक विकार या रोग भी विचार की ही उपज हैं । वस्तुतः विचारों की सबल जड़ें जब पोष प्रदान करती हैं, तभी आचार का वृक्ष फलता-फूलता है । समन्वित शक्ति विद्युत् ऋण शक्ति और धन शक्ति का समन्वित रूप है । दोनों मिलकर ही प्रकाश करती हैं । उसी प्रकार विचार और आचार भी समन्वित होते हैं, तभी जीवन प्रकाशमय बनता है। कोरा विचार पंगु होता है तो कोरा आचार अंधा । घर में लगी आग से न पंगु बच सकता है और न अंधा, किन्तु वे दोनों मिलकर समन्वित प्रयास करें तो बच सकते हैं। दूध के गुण धर्मों का विचार नहीं करने वाला किसी अन्य तद्रूप वस्तु को भी दूध मान सकता है, परन्तु उससे दूध का लाभ प्राप्त नहीं हो सकता। इसी तरह केवल दूध के गुण-धर्मों को जान लेने वाले को भी तब तक उससे कोई शक्ति नहीं मिल पाती, जब तक कि वह उसे पी नहीं लेता । मंजिल तक पहुंचने के लिए उसे जानना तथा उसकी ओर चलते जानादोनों ही समान रूप से आवश्यक होते हैं । इन सभी उदाहरणों का निष्कर्ष एक ही है कि विचार और आचार की समन्वित शक्ति ही मनुष्य को उन्नति की ओर ले की है। उन्नति की प्रक्रिया वर्तमान युग में मनुष्य का चिन्तन बहुत आगे बढ़ा है। एतद्विषयक उसकी शक्ति तीक्ष्ण से तीक्ष्णतर हुई है, किन्तु उसका क्रिया-पक्ष काफी पिछड़ गया है। यही कारण है कि उसके सम्मुख आज अनेक समस्याएं सिर उठा रही हैं । क्रिया-पक्ष के पिछड़ेपन को मिटाना है तो प्रत्येक सुविचार को आचार में परिणत करने की तैयारी करनी होगी। उनकी परस्पर अत्यधिक दूरी ही समस्याओं का समाधान नहीं होने देती । सुविचारों की पृष्ठभूमि पर आचार को आगे बढ़ाने का उपक्रम करना, उन दोनों का सामंजस्य बिठाना युग की आवश्यकता है | विचार आचार में ढले और फिर आचार नये विचार के बीज उत्पन्न करे, यही उन्नति की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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