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२२ चिन्तन के क्षितिज पर
विकास-त्रयी धैर्य के अभाव में ऐसी असफलता का शिकार कोई भी हो सकता है। अपने ही अन्दर अवस्थित विकास का स्वर्ण-भण्डार केवल एक फुट की दूरी पर रह जाता है और हम धैर्य के अभाव में सफलता के द्वार तक पहुंचकर खाली हाथ वापस लौट आते हैं। इसीलिए कहा जा सकता है कि विकास की पूर्णता की ओर बढ़ने वाले मनुष्य को तीनों गुणों की नितान्त अपेक्षा है। एक का भी अभाव गति को कंठित कर देता है। श्रद्धा हमारे में योग्यता का विकास जगाती है, साहस विघ्नों की छाती चीरकर आगे बढ़ाने में सहायता देता है और धैर्य अन्तिम शिखर पर पूर्ण विजय का ध्वज फहराने तक डटे रहने में सहायक होता है।
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