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________________ विकास के पथ पर २१ धैर्य की आवश्यकता तीसरा गुण है धैर्य । श्रद्धा और साहस के पश्चात् भी विकास के अन्तिम शिखर तक पहुंचने के लिए धैर्य की महती आवश्यकता रहती है । मार्ग की प्रलम्बता तथा चढ़ाई की दुरूहता मन को कभी भी अधीर बना सकती है । जब व्यक्ति सफलता के एकदम समीप पहुंचकर भी यह सोचकर निराश वापस लौट पड़ता है कि न जाने अभी कितना चलना और शेष है ? कोई पत्थर यदि हथौड़े की दसवीं चोट से टूटने वाला है तो यह असम्भव नहीं कि कभी हम थककर नौवीं चोट देकर ही हथौड़ा फेंक दें और कहें कि मेरे से यह टूटने वाला नहीं है । हमारी अधीरता हमें केवल एक चोट के लिए असफल बना देती है । स्वर्ण भण्डार पूर्ण सफलता तक डटे रहने का धैर्य जुटा पाना बड़ा कठिन कार्य है । कोई-कोई ही ऐसा कर पाते हैं । अमेरिका के कोलरेडो क्षेत्र में स्वर्ण की खदानें मिलने का पहलेपहल पता चला, तब अनेक धनिकों ने वहां भूमि खरीदी और स्वर्ण निकालने लगे । एक करोड़पति ने तो ऐसा साहस किया कि अपनी पूरी पूंजी ही उस कार्य में लगा दी । उसने एक पूरा पहाड़ ही खरीद लिया। बड़ा क्षेत्र था और बड़ी पूंजी लगाई गई थी तो यंत्र भी नये और बड़े लगाये गये । कार्य प्रारम्भ हुआ । काफी नीचे तक खुदाई की गई, पर स्वर्ण का कहीं कोई पता नहीं चला। धनिक को बड़ी घबराहट हुई। पूरी पूंजी डूब जाने की स्थिति सामने थी । आखिर उसने यंत्रों - सहित पूरे पहाड़ को बेचने का विज्ञापन निकाल दिया। घरवालों ने कहा - " अब उसे कौन खरीदेगा ? सबको पता लग चुका है कि उस पहाड़ में कहीं स्वर्ण नहीं है ।" धनिक 1 फिर भी आशा थी कि शायद किसी के सिर पर मेरी ही तरह स्वर्ण का भूत सवार हो और वह खरीद ले । उसकी आशा सत्य निकली। एक व्यक्ति ने अगले ही दिन उसे खरीद लिया । बन्द पड़ी खुदाई यथाशीघ्र पुनः चालू की गयी। पहले ही दिन केवल एक फुट भूमि और खोदने पर प्रचुर मात्रा में स्वर्ण निकल आया । विक्रेता धनिक को जब ये समाचार ज्ञात हुए तो वह उससे मिलने गया और बोला - "तुम बड़े भाग्यशाली निकले। मुझे तो मेरे दुर्भाग्य ने धोखा ही दिया । " उस व्यक्ति ने कहा- "नहीं, मित्र । यह दुर्भाग्य का नहीं, अधैर्य का फल है । यदि तुम थोड़ा धैर्य और रख पाते तथा खुदाई को मात्र एक फुट और आगे बढ़ा लेते तो यह सारा स्वर्ण-भ -भण्डार तुम्हारा होता ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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