________________
२० चिन्तन के क्षितिज पर
बाधाओं का सामना करता है और लक्ष्य प्राप्ति के लिए 'करूंगा, अन्यथा मरूंगा' की दृढ़-प्रतिज्ञा लेकर चलता है । विकास का मार्ग अपरिचित में प्रवेश का मार्ग है । बिलकुल अज्ञात, अकल्पित स्थितियों में से गुजरना होता है । मन भयभीत होने लगता है कि न जाने आगे क्या होगा, कैसा होगा ? उस समय साहस ही उसके कान में मंत्र फूंकता है कि खतरा उठाना ही श्रेयस्कर है। बिना खतरा उठाये कभी कोई विकास सम्भव नहीं होता । बीज यदि अपने प्रथम प्रस्फोट पर ही घबराकर विरत हो जाए तो कभी वृक्ष बन ही न पाये ।
हर व्यक्ति लक्ष्य तो प्रायः ऊंचा ही बनाता है, मनः कल्पना के क्षेत्र में कोई किसी से नीचे स्तर का रहना नहीं चाहता, परन्तु उस तक पहुंचने में बहुत-सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। यह एक प्रकार का रण क्षेत्र है । साहस बिना उसमें प्रवेश का भी खतरा उठाया नहीं जा सकता। विजय की तो फिर बात ही बहुत दूर रह जाती है । प्रबल साहसी ही वहां पग रोपकर खड़ा रह सकता है, शेष सब भाग खड़े होते हैं । इसीलिए मेरा मानना है कि पूर्ण विकास के लिए आत्म-विश्वास के साथ साहस का योग होना अत्यन्त आवश्यक है ।
मार्ग का स्वयं निर्माण
रेल के लिए पटरी बिछी हुई होती है, मोटर आदि अन्य वाहनों के लिए सड़कें हैं, मार्ग हैं, पगडंडियां हैं, वे उन पर सरपट दौड़ते चले जा सकते हैं, परन्तु आत्मविकास के लिए कोई पूर्व निर्मित पटरी, सड़क, मार्ग या पगडंडी नहीं हो सकती । प्रत्येक को स्वयं ही अपना मार्ग बनाना होता है । किसी अन्य का मार्ग अपने लिए उपयोगी नहीं हो सकता। इसमें कारण है । प्रत्येक व्यक्ति के संस्कार, स्वभाव तथा आवरण भिन्न-भिन्न हैं, अतः उनके रूपान्तरण तथा विलय के मार्ग भी भिन्न प्रकार के ही होंगे। उनमें क्वचित् समानता परिलक्षित हो सकती है, परन्तु पूर्ण समानता कभी नहीं होती । नीतिकार ने कहा है
लोक-लोक गाड़ी चलं, लीक हो चले लीक छोड़ तीनूं चलै, सायर सिंह
कपूत ।
सपूत ॥
बंधी - बंधाई लीक पर या तो गाड़ी चलती है या फिर कपूत चलता है, क्योंकि रूढ़ लीकों—परिपाटियों को बदल डालने का उनमें कोई साहस नहीं होता । नदी, सिंह और सपूत तो पुरानी लीक को छोड़कर अपना मार्ग स्वयं बनाते हैं । उसमें पुराने मार्ग का भी कुछ भाग आ सकता है, पर वह अपने विवेक के निर्णय से ही आता है, पुराना है— इसलिए नहीं । पुराने का परित्याग और नये का निर्माण दोनों ही साहस की अपेक्षा रखते हैं । उसके बिना आज तक सम्भव नहीं हो पाया है, आगे भी नहीं हो पायेगा ।
कोई भी विकास
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org