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सामाजिक न्याय का विकास १७
पहुंचेगा, इस पर तो प्रश्नचिह्न ही लगा हुआ है । फिर भी आशा करनी चाहिए कि चिरकाल से सुप्त सामाजिक चेतना का पुनर्जागरण होगा, प्रगति के कुंठित पैरों में पुनः गतिमत्ता की स्फुरणा आयेगी, वैषम्य की चक्की में पिसते निर्बलतम नागरिक को भी न्याय की तुला पर निष्पक्ष एवं त्वरित न्याय मिलेगा। अवश्य ही सघन तिमिर के साम्राज्य को बिखेरता हआ नवोदित प्रभात का वह समय सबके लिए कल्याणकारी होगा।
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