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अणुव्रती 'अमन' २१३
था । अमनजी उर्दू में शायरी किया करते थे तो मैं हिन्दी कविताएं लिखा करता था । अनेक बार हमने एक-दूसरे की कविताओं को सुना - समझा था ।
कटोरियां बदलीं
एक बार मैंने उनके निवास स्थान पर रात्रि निवास किया। वहां स्थानीय अनेक महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों से सम्पर्क करने का अवसर तो मिला ही, स्वयं अमनजी के साथ भी अणुव्रत अन्दोलन की तत्कालीन आवश्यकताओं पर खुलकर विचार करने का अवसर मिला । उसी सिलसिले में मानवीय वृत्तियों की विचित्रता के विषय में उन्होंने मुझे एक घटना सुनाई, वह आज भी मुझे याद है ।
उन्होंने कहा - "अंग्रेजी राज्य के विरुद्ध चलाए जा रहे आन्दोलन के सिलसिले हम लोग कांग्रेस की ओर से जेल गए। वहां उस समय भोजन की व्यवस्था बहुत ही बुरी थी । रद्दी आटे से बनी अधपकी चपातियां और पानी जैसा साग दिया जाता था । साग की कटोरी में आलू का तो कोई एकाध टुकड़ा ही हुआ करता था । उससे अधिक टुकड़े किसी कटोरी में हों तो उसे किसी भूल का परिणाम ही समझना चाहिए । एक दिन सभी लोग भोजन करने के लिए बैठे। वहां एक व्यक्ति की कटोरी में आलू का केवल एक टुकड़ा ही था जबकि उसके पास वाले व्यक्ति की कटोरी में तीन टुकड़े थे । व्यक्ति भोजन प्रारम्भ करने से पूर्व पानी लेने गया तब तक प्रथम व्यक्ति को अवसर मिल गया। उसने चुपके से अपनी थाली की कटोरी उसकी थाली में रख दी और उस थाली की अपनी थाली में रख ली ।"
घटना का उपसंहार करते हुए अमनजी ने कहा - " मुनि जी ! यह है हमारी वृत्तियों की दशा । जिसकी वृत्ति बुरी होती है, वह छोटी-बड़ी वस्तु नहीं देखता । उस समय उतना ही अवसर था, अतः उस पर हाथ साफ किया । वैसे व्यक्ति सत्ता पर आने के पश्चात् लाखों पर हाथ मारते हैं ।"
तकुओं का उपयोग
अहिंसा विषयक वार्तालाप के एक प्रसंग में अमनजी ने मुझे एक घटना सुनाई । उन्होंने कहा - " उस वर्ष कांग्रेस का अधिवेशन बंगाल में था । सदस्यों में किसी बात को लेकर सिद्धान्त-भेद उभर आया । तत्काल परस्पर गरमागरम बहस होने लगी । कुछ ही मिनटों में वह बहस तकरार में बदल गई । तब खींचातानी प्रारम्भ हो गई । अगले ही क्षण उस स्थिति ने मारपीट का रूप ले लिया । बहुत से व्यक्तियों के पास सूत कातने के लिए लाये हुए तकुए और चरखे थे । उत्तेजना के क्षणों में अहिंसा के प्रतीक उन तकुओं और चरखों का उपयोग एक-दूसरे को चोट पहुंचाने में हुआ । अमनजी का निष्कर्ष था कि साधन-शुद्धि पर बल देना बहुत उत्तम है,
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