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अणुव्रती 'अमन'
निष्ठाशील व्यक्तित्व श्री गोपीनाथ 'अमन' से मेरा परिचय अणुव्रत आन्दोलन के सिलसिले में हुआ। मैंने पाया कि वे एक मृदुस्वभावी, सरल एवं नीतिनिष्ठ व्यक्ति हैं। किसी भी संस्था के लिए ऐसे व्यक्तियों का सहयोग बहुत महत्त्वपूर्ण सिद्ध होता है फिर आध्यात्मिक एवं नैतिक विकास के लिए कार्य करने वाली संस्थाओं के लिए तो वह मणि-कंचन संयोग जैसा ही कमनीय बन जाता है । अमनजी अणुव्रत आन्दोलन को राष्ट्र के लिए परम उपयोगी मानते थे। वे स्वयं अणुव्रती बने और आन्दोलन के कार्य को आगे बढ़ाने में निरन्तर सचेष्ट रहे । अनेक वर्षों तक वे दिल्ली एवं अखिल भारतीय अणुव्रत समिति के अध्यक्ष भी रहे। मेरा सम्पर्क दिल्ली से मेरा सम्पर्क सं० २००६ के शेषकाल में तब हुआ जब प्रथम बार आचार्यश्री तुलसी वहां पधारे। मैं उस समय उनके साथ ही था। फिर तो ऐसा क्रम बना कि उसके बाद के दस वर्षों में मुझे दिल्ली में छ: चातुर्मास करने का अवसर मिला। उनमें भी पिछले चार चातुर्मास तो ऐसे थे, जिनके शेष काल भी मैंने प्रायः दिल्ली में ही व्यतीत किए। अणुव्रत आन्दोलन के लिए वह समय जनसम्पर्क की शुद्ध नींव भरने का था, अतः बहुत उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण था। उस समय जन-साधारण से लेकर राजनेताओं तक न केवल सम्पर्क ही साधा गया, अपितु उसमें गांभीर्यापादन भी किया गया। पत्रकारों एवं साहित्यकारों के सम्पर्क को भी उच्च प्राथमिकता दी गई।
ऐसे ही अवसर पर अमनजी से प्रथम परिचय हुआ। फिर तो अणुव्रत आन्दोलन के कार्यक्षेत्र में एक-दूसरे से मिलने और विचार-विमर्श करने के प्रसंग बार बार आते रहे । परिणामतः वह परिचय सामीप्य में बदल गया और व्यक्तिगत संबंधों में गहराई आती गई। उस गहराई में एक कारण हम दोनों का कविता-प्रेम भी
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