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जयपुर के प्रमुख तेरापंथी श्रावक २०३
१६. भूरामलजी पटोलिया
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भूरामलजी पटोलिया के पूर्वज लखनऊ से आकर जयपुर बसे थे । वे श्रीमाल थे । और खरतरगच्छीय संवेगी थे । भूरामलजी के पिता मोतीलालजी ने ऋषिराय के पास गुरुधारणा की थी । वे लाला भैरूलालजी सींधड़ के भानजे थे । भूरालालजी जयाचार्य के बड़े श्रद्धालु श्रावकों में से थे । वे अपने समय के अच्छे विद्वान् और बहु प्रतिष्ठित व्यक्ति थे । संस्कृत, उर्दू, फारसी और अंग्रेजी आदि अनेक भाषाओं के विद्वान् थे । वे राज्य के हिसाब महकमे में उच्चाधिकारी थे । नरेश के अत्यन्त विश्वसनीय व्यक्तियों में गिने जाते थे । आचार्य का स्वर्गवास हुआ, उस समय जयपुर राज्य की ओर से लवाजमा आदि की जो भी आज्ञाएं हुईं, वे सब भूरामलजी के नाम से हुई थीं । उन्होंने उसी समय उस राजाज्ञा का 'स्याहा' बनवा लिया । स्याहा बनवा लेने से वह आज्ञा पुनरावर्त्तनीय कोटि में आ गयी। उसी आधार पर कालान्तर में सं० १९७० में मुनि फूसराजजी तथा सं० १९९६ में मुनि पूनमचंदजी के दिवंगत होने पर लवाजमा प्राप्त करने की सुविधा काम में ली गयी ।
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भूरामलजी के तीन पुत्र थे - सूरजमलजी, छगनलालजी और मगनलालजी । सूरजमलजी ने अमरीकी विश्वविद्यालय में कानूनी परीक्षा देकर एल एल० डी० की उपाधि प्राप्त की थी । वे जयपुर नगरपालिका परिषद् के ७ वर्ष तक सदस्य रहे । साथ ही अनेक वर्षों तक सैण्ट्रल एडवाइजरी बोर्ड के भी सदस्य रहे । सात वर्षों तक वे ओनरेरी मजिस्ट्रेट भी रहे । प्रतिदिन सामायिक और स्वाध्याय किया करते थे । व्याख्यान में चातुर्मास काल में तो प्रायः आया करते थे, शेष काल में कभी आ पाते, कभी नहीं ।
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दूसरे पुत्र छगनलालजी उच्च कोटि के वकील थे । वे भी अच्छे श्रद्धाशील और तत्त्वज्ञ श्रावक थे । जैन धर्म तथा अन्य धर्मों के मन्तव्यों का वे तुलनात्मक अध्ययन करते रहते थे । उन्होंने अपने अध्ययन का सार एक रजिस्टर में संकलित किया था । धर्म - शासन के कार्यों में अच्छा भाग लेते थे । उनके पास जैन- अजैन ग्रन्थों का भी अच्छा संग्रह था ।
तीसरे पुत्र मगनलाल जी जवाहरात का कार्य करते थे । वे भी एक अच्छे श्रद्धाशील और धर्मपरायण श्रावक थे । मुनिजनों के दर्शन करने, सामायिक करने तथा व्याख्यान सुनने की रुचि रखते थे ।
२०. गट्टूलालजी हटवा
गट्टूलालजी हटवा अग्रवाल थे । बाल्यावस्था में संस्कृत का अध्ययन करते थे । तब सं० १८८१ में मुनि जीतमलजी (जयाचार्य) ने इन्हीं से सुन-सुन कर सारस्वत
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