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________________ २०२ चिन्तन के क्षितिज पर १६. किसनलालजी पाटनी किसनलालजी पाटनी खण्डेलवाल दिगम्बर थे । जयाचार्य के पास तत्त्व समझकर तेरापंथी बने । धीरे-धीरे उनके प्रयास से पूरा परिवार तेरापंथी बन गया । व्यापार 1 में भी वे पूरी सत्यता निभाते थे । एक भाव और पूरी तौल, यह उनकी छाप थी । व्यापार दिन में ही करते थे। रात का समय सन्तों के पास या सामायिक स्वाध्याय में बिताते। दुकान पर भी वे खुले मुंह बात नहीं करते थे अतः लोग 'ढूंढ़िया' कहकर पुकारने लगे। पीढ़ियों तक उक्त विशेषण गोत्र की तरह उस परिवार के साथ जुड़ा रहा । किसनलालजी विरागी तत्त्वज्ञ श्रावक थे । आजीवन उन्होंने अपने व्रतों को बहुत दृढ़ता से निभाया । १७. केसरलालजी और गौरीलालजी पाटनी केसरलालजी और गौरीलालजी पाटनी सुन्दरलालजी के पुत्र थे । ये दोनों किसनलालजी पाटनी के प्रपौत्र थे। दोनों भाई दृढ़ श्रद्धाशील और अच्छे तत्त्वज्ञ थे । केसरलालजी वकालत करते थे । प्रतिदिन सामायिक करते और व्याख्यान सुनते थे । चर्चा - वार्ता में भी निपुण थे । 1 गौरीलालजी भी बी० ए०, एल-एल० बी० थे । हिन्दी की मध्यमा और उर्दू की मुन्शी तक शिक्षा प्राप्त की । उत्साही और बड़े परिश्रमी थे । सार्वजनिक कार्यों में भी काफी रुचि रखते थे । अनेक संस्थाओं के पदाधिकारी रहे । १२ वर्षों तक जयपुर नगरपालिका परिषद् के सदस्य रहे और फिर उपाध्यक्ष भी रहे । तेरापंथी विद्यालय के भी अनेक वर्षों तक मंत्री रहे । मुनि-दर्शन, सामायिक और व्याख्यान आदि में भी यथासमय रुचि से भाग लेते थे । १८. बखतावरसिंहजी भांडिया भैंरूदासजी भांडिया लखनऊ से आकर जयपुर में बसे । जवाहरात का कार्य करते थे । मन्दिरमार्गी आम्नाय के थे । बखतावरसिंहजी ने जयाचार्य के पास गुरुधारणा की । उनके कोई पुत्र नहीं था अतः आनन्दीलालजी को गोद लिया । वे भी दृढ़ श्रद्धालु और धर्मपरायण श्रावक थे। कहा जाता है कि एक बार किसी व्यक्ति का उनके साथ आग्रह हो गया कि जितनी सामायिक वे करेंगे उतनी ही वह भी करेगा । आनन्दीलालजी ने तब लगातार १०१ सामायिक की। दूसरा व्यक्ति स्वयं ही पराजित हो गया । इनके पुत्र गुलाबचन्द ने भी उस समय एक साथ २१ सामायिक की । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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