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________________ जयपुर के प्रमुख तेरापंथी श्रावक २०१ १३. सुजानमलजी खारेड़ सुजानमलजी खारेड़ का जन्म सं० १९३५ चैत्र कृष्णा ५ को हुआ। वे माणकगणि के बड़े भाई कस्तूरीचन्दजी के पुत्र थे। अच्छा तत्त्वज्ञान था। गुलाबचन्दजी लूणिया के साथ मिलकर अच्छा गाया करते थे। थोकड़े काफी कण्ठस्थ थे। प्रश्नोत्तर तत्त्वबोध भी कण्ठस्थ किया था। बारह व्रत धारे हुए थे । जवाहरात की दलाली करते थे। उसके सिवा अन्य आय का त्याग था। एक बार सरदारशहर निवासी श्रावक वृद्धिचन्दजी गोठी ने उनके माध्यम से जयपुर से कोई वस्तु मंगवाई। उन्होंने पार्सल के द्वारा भेज दी। गोठीजी ने तब वस्तु का मूल्य और उनकी आढ़त के रुपये भेजे। उन्होंने आढ़त के रुपये वापस लौटाते हुए लिखा कि उन्हें ऐसी कमाई का प्रत्याख्यान है। उनका देहावसान सं० २००५ माघ कृष्णा २ को हुआ। १४. नानकरामजी नागौरी नानकरामजी अग्रवाल जाति के थे। उनके पूर्वज मंगलचन्दजी ने जयाचार्य के पास श्रद्धा ग्रहण की थी। जैलजी उनके दत्तक पुत्र थे। उनके दो पुत्र हुए--नानकरामजी और बल्लिलालजी । दोनों ही भाई अत्यन्त निष्ठावान और भक्तिमान श्रावक थे। नानगरामजी को, काफी थोकड़े कण्ठस्थ थे। धारणा बहुत अच्छी और गहरी थी वे तन, मन, धन से शासन की सेवा किया करते थे । स्थानीय तेरापंथी सभा के अनेक वर्षों तक सभापति रहे । सं० २०२३ में उनका देहान्त हुआ। उनके दत्तक पुत्र श्यामलालजी ने उनकी स्मृति में सं० २०२५ में मिलाप भवन में दो हॉल बनवाये। १५. मनजी काला मन्नालालजी काला को संक्षेप में मनजी काला ही कहा जाता था । अग्रवाल जाति के थे। 'काला' उनका विशेषण इसलिए बन गया था कि पीढ़ियों से उनके पूर्वज सांप काटे का उपचार करते थे। मनजी भी यह कार्य करते थे। यह कार्य केवल उपचार की दृष्टि से किया जाता था। उनके बदले में पैसा या भेंट बिल्कुल नहीं ली जाती थी। मनजी का जीवन सं० १८९८ से सं० १९६८ तक का था। दलाली का कार्य करते थे अतः मनजी का लाला भैरूलालजी सींधड़ के वहां भी आना-जाना रहता था। उसी सम्पर्क से साधु-साध्वियों से परिचित हुए। जयाचार्य के पास गुरु धारणा ली। तत्त्वज्ञान किया। सामायिक दिन-प्रतिदिन करते रहते थे । अनेक लोगों को उन्होंने थोकड़ों का ज्ञान करवाया। कहा जाता है कि घर-घर जाकर थोकड़ा सिखाया करते थे। इसलिए उनका नाम 'उस्तादजी' पड़ गया। लगभग ७० वर्ष की अवस्था में उनका देहान्त हो गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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