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शक्ति-स्वरूपा जैन साध्वियां १६१ दीपांजी ने तब साध्वियों का गोल घेरा बनाया और नमस्कार मंत्र का जोर-जोर से जप करने लगीं । लुटेरे अनिष्ट की आशंका से घबरा कर भाग खड़े हुए।
एक बार किसी श्रावक ने उनके पात्र में बहुत सारा घी डाल दिया। शाम को खिचड़ी आदि में मिलाकर सतियों ने उसे खा लिया । प्रतिक्रमण के पश्चात् दीपांजी ने सबको तपस्या की प्रेरणा दी। फलस्वरूप उनके सिंघाड़े में एक साथ पांच छह-मासी तप हुए। सं० १९९८ आमेट में उन्होंने अनशन पूर्वक देह त्याग किया।
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