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बौद्धिक वर्ग : सामाजिक दायित्व
आज संसार में क्षेत्रीय, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की अनेक ज्वलंत समस्याएं हैं जो कि चिन्तन की अपेक्षा रखती हैं । बुद्धिजीवी वर्ग उन समस्याओं का समाधान निकाल लेने के लिए पूर्णतः समर्थ है ।
बद्धिजीवियों का कर्तव्य भारत एक विशाल और प्राचीन देश है। उसकी आन्तरिक एवं बाह्य अनेक समस्याएं हैं। बुद्धिजीवियों का कर्तव्य है कि उन समस्याओं को समाहित करने के लिए उपाय खोजें । यद्यपि बुद्धिजीवी समस्याओं को सुलझाने में योग्य होते हैं, फिर भी इसका अर्थ यह नहीं कि प्रत्येक बुद्धिजीवी समस्याओं का निराकरण करके समाज का मार्गदर्शक बन सकता है या उसे सही रास्ते पर लगा सकता है। एक सर्वेक्षण का निष्कर्ष है कि सौ में से केवल पांच ही व्यक्ति मार्गदर्शक बनने या नेतृत्व करने का सामर्थ्य रखते हैं। शेष सारे उनके पीछे-पीछे चलने वाले होते हैं । यही बात विद्रोह एवं क्रान्ति करने वालों पर भी लागू होती है। मेरी यह बात भी आपको विचित्र लगेगी कि जो व्यक्ति जितना तेज सुधार कर सकते हैं, विपरीत होने पर वे उतना ही तेज बिगाड़ भी कर सकते हैं।
साक्षराः राक्षसाः वस्तुत: सूधारने तथा बिगाड़ने की क्षमताएं भिन्न नहीं होतीं, केवल उसके दिशापरिवर्तन पर ही सारा भविष्य या व्यवस्थाएं निर्भर करती हैं। पूर्व से पश्चिम की ओर मुख करने में केवल थोड़े-से घुमाव की ही आवश्यकता होती है। उसी प्रकार सुधार या बिगाड़ में लगा हुआ नेतृत्व थोड़े-से परिवर्तन में ही अपनी विपरीत दिशा में सक्रिय हो सकता है । नीतिकारों ने कहा भी है-“साक्षराः विपरीताश्चेद् राक्षसा एव केवलम्" अर्थात् विद्वान् व्यक्ति विपरीत सोचने लग जाते हैं तो वे
राक्षस से कम नहीं होते। अनुकूलता से सोचने पर ही वे राष्ट्र के लिए हितकर Jain Education International
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