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निर्माण के निखरते दायित्व ७
पुरुषार्थ नहीं हारता आचारांग सूत्र में भगवान् महावीर कहते हैं- "पुरिसा परमचक्खू ! विपरिक्कमा” चक्षुष्मान् पुरुष, तुम पराक्रम करो । कार्य की सफलता को पूर्णता प्रदान करने वाला पुरुषार्थ ही होता है। पूर्णमात्रा तथा सम्यक् दिशा में लगे पुरुषार्थ के सम्मुख कभी असफलता टिक नहीं पाती। यदि कहीं असफलता मिलती है तो समझना चाहिए कि पुरुषार्थ की मात्रा बढ़ाने की अपेक्षा है। पुरुषार्थ कभी नहीं हारता। विरोधी परिस्थितियों पर प्रहार कर विजय पाने वाला होता है।
सफलता के उक्त चारों सूत्र उत्तरोत्तर विकास में साधक बनते हैं। इन्हीं से मनुष्य का भविष्य-निर्माण होता है। इन चारों में कोई भी दैवीय तत्त्व नहीं है। सब के सब मनुष्य द्वारा ही अनुष्ठानीय हैं । इसी आधार पर कहा जा सकता है कि प्रत्येक मनुष्य का अपना भविष्य स्वयं उसी के हाथ में है। वह स्वयं उसे बना भी सकता है, बिगाड़ भी सकता है। बिगाड़ने की बात तो कोई अज्ञानी ही सोच सकता है । सुज्ञानी तो भविष्य को बनाने या सुधारने में ही अपनी शक्ति का नियोजन करता है। निर्माण ही मनुष्य की महत्ता का द्योतक है ।
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