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६ चिन्तन के क्षितिज पर
उतनी ही उच्च कोटि की तैयारी भी उपेक्षित होती है। प्रत्येक सफलता में निम्नोक्त चार सूत्र विशेष सहायक हो सकते हैं
१. आस्था, २. आकांक्षा, ३. संकल्प और ४. पुरुषार्थ ।
आस्था की धरती
सफलता की प्राप्ति के लिए जो सर्वाधिक आवश्यक तत्त्व है, वह आस्था है । प्रत्येक सफलता का बीज आस्था की धरती पर ही बोया जा सकता है। अपने कर्तृत्व में आस्था नहीं हो तो व्यक्ति किसी भी कार्य को हाथ में लेने से कतराने लगता है । अपनी क्षमता पर तो विश्वास हो, परन्तु कार्य के प्रति आस्था न हो अर्थात् उस कार्य को वह करने योग्य ही नहीं मानता हो तब भी वह उसे करने के लिए उद्यत नहीं होता । कर्तृत्व और कार्य — दोनों के प्रति आस्थावान् होने पर ही मनुष्य उसके लिए प्रस्तुत हो सकता है। इसीलिए विकास के अभियान में सफलता का प्रथम पड़ाव आस्था की धरती पर ही किया जा सकता है ।
उच्चतर की आकांक्षा
afrain प्राणी यथास्थिति में ही जी लेते हैं । कोई भी नयी आकांक्षा उनके मानस में अंगड़ाई लेकर खड़ी नहीं हो पाती । गाय, घोड़ा, कुत्ता आदि पशु सहस्रों-सहस्रों वर्षों से प्रायः एक ही प्रकार का बंधा बंधाया जीवन जीते हैं। उनके मन में उच्चतर बनने की कोई आकांक्षा नहीं होती, तो कोई योजना भी नहीं । फलतः कोई प्रगति भी नहीं होती । एक मात्र मनुष्य ही ऐसा प्राणी है, जो यथास्थिति को कभी नहीं स्वीकारता । वह उसे बदल डालने को सदैव आतुर रहता है । जो प्राप्त है वह तो उसका होता ही है, अप्राप्त को प्राप्त करने में भी उसकी उद्दाम अभिरुचि रहती है । अपने सामर्थ्य की आस्था उसमें उच्चतम बनने की आकांक्षा जगाती है । आस्था की धरती पर बोये गये सफलता के बीज आकांक्षा का जल मिलने पर ही अंकुरित हो पाते हैं। आग कहते हैं -- उच्चतम बनने के मार्ग में यदि संसार बाधक बनता है तो उसके विपरीत खड़े होने में भी मत हिचकिचाओ । 'पडिसोय मेव अप्पा, arraat होउ कामेणं' उच्चतम की आकांक्षा मनुष्य को सफलता के पथ पर आगे बढ़ती है।
पाने या खपाने का निर्णय
सफलता के लिए तीसरा सूत्र है— संकल्प । आकांक्षा एक चाह है। संकल्प है उसे पाने के लिए स्वयं को खपा देने की तैयारी । सम्यक् दिशा में लगा संकल्प ही मनुष्य को 'कार्यं वा साधयेयं, देहं वा पाततेयं' जैसा दृढ़ निश्चय प्रदान करता है । शिथिलता विहीन संकल्प सफलता के फलीभूत होने में आधार - भूमि बनता है ।
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