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आचार्यश्री तुलसी : कुशल अध्यापक
आचार्यश्री तुलसी अपने युग के सर्वाधिक चर्चित जैनाचार्य हैं। उनकी क्षमताएं असीम हैं । वे अपनी क्षमताओं का बहुत अच्छा उपयोग करना जानते हैं। इसलिए प्रत्येक क्षेत्र में सफलता उनकी बाट निहारती मिलती है। उन्होंने जितनी लम्बी पदयात्राएं की हैं, आध्यात्मिकता के क्षेत्र में जितना जनमानस को झकझोरा है तथा किसान से लेकर राष्ट्र के सर्वोच्च व्यक्तियों तक को जितना प्रभावित किया है, उतना किसी भी धर्म के अन्य किसी भी धर्माचार्य ने शायद ही किया हो। जीवन के आठवें दशक में भी वे इतने क्रियाशील हैं कि युवक भी उनकी बराबरी नहीं कर सकते । इतने कार्य-क्षेत्रों की जमीन उन्होंने तोड़ी है कि देखकर आश्चर्य होता है। केवल जमीन तोड़ने तक की ही बात नहीं है । उन्होंने उन सबको जोता है, बोया है और उनसे भरपूर फसलें प्राप्त की हैं।
अविश्रान्त यात्री आज आचार्यश्री तुलसी एक युगप्रधान आचार्य हैं, तेरापंथ के नवम अधिशास्ता हैं, अणुव्रतों के माध्यम से जनजीवन को नैतिकता के सूत्रदाता हैं, समाज को रूढ़िमुक्त बनाने के लिए नये मोड़ के मंत्रदाता हैं, आगम शोध कार्य के वाचना प्रमुख हैं, प्रेक्षाध्यान पद्धति के प्रेरक एवं उद्बोधक हैं, धर्मसंघ की चतुर्मखी प्रगति के लिए निरन्तर सावधान मार्गदर्शक हैं, लगभग सात सौ साधु-साध्वियों की साधना की व्यवस्था, संरक्षा और विकास का पूर्ण उत्तरदायित्व वहन करते हैं, श्रावकश्राविका वर्ग की प्रत्येक आध्यात्मिक समस्या के समाधान का भार भी उन्हीं के कंधों पर है । अनेक लोगों की व्यक्तिगत समस्याओं को सुलझाने में भी उन्हें अपना समय और श्रम लगाना पड़ता है। प्रतिदिन प्रातःकालीन धर्म सभा में लगभग घण्टाभर व्याख्यान देते हैं। कभी-कभी एक ही दिन में दो या तीन बार भी व्याख्यान देने होते हैं । वे आजीवन पदयात्री हैं। पूरे भारतवर्ष को उन्होंने अपनी पदयात्राओं से मापा है। आज भी उनकी पदयात्रा चाल है। उसी प्रकार से उनकी लेखनी भी अविश्रान्त चलती रही है । संस्कृत, हिन्दी और राजस्थानी भाषा में
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