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१६६ चिन्तन के क्षितिज पर
माना है । इसीलिए प्रेक्षा-ध्यान-पद्धति का विकास किया गया है। युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ के निर्देशन में चलने वाले ध्यान-शिविरों ने अल्प समय में प्रबुद्ध व्यक्तियों को अतिशय प्रभावित किया है ।
द्रष्टा : ऋषि आचार्यश्री तुलसी समन्वय और सामंजस्य में विश्वास करते हैं। जैनों के विभिन्न सम्प्रदायों के आचार्यों से उनका निकट सम्पर्क है। बहुधा वे ऐसे बिन्दु खोजते हैं जो समीपता उत्पन्न कर सकें। जैनेतर धर्मों के आचार्यों तथा विद्वानों से भी वे समन्वयात्मक चिन्तन करते रहते हैं। उनका विश्वास है कि हर धर्म प्रेम का मार्ग ही दिखा सकता है, झगड़े या क्लेश का नहीं।
आचार्यश्री का जन्म वि० सं० १९७१ कार्तिक शुक्ला २ को लाडनूं (राजस्थान) में हुआ। ग्यारह वर्ष की लघुवय में वे आचार्यश्री कालगणी के पास दीक्षित हुए। बाईस वर्ष की अवस्था में आचार्य बने । आज वे अपने ७७वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। भारत के इस द्रष्टा ऋषि के चरणों में शत-शत वन्दन ।
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