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________________ द्रष्टा ऋषि : आचार्यश्री तुलसी १६५ पदयात्रा : जनकल्याण अणुव्रत - कार्य को गति देने के लिए आचार्यश्री ने अपने विहार क्षेत्र को विस्तृत किया। भारत के अधिकांश प्रान्तों में पदयात्रा करते हुए वे लगभग एक लाख किलोमीटर घूम चुके हैं। वर्तमान में सत्तर वर्ष की अवस्था में भी उनकी पदयात्रा यथावत् चालू है । वे जहां भी जाते हैं वहां हजारों-हजारों व्यक्ति उन्हें सुनने को एकत्रित हो जाते हैं । ग्रामीणों को वे मद्यपान, धूम्रपान आदि व्यसनों से तथा मृत्यु-भोज, पर्दाप्रथा आदि रूढ धारणाओं से मुक्त करते हैं । अपमिश्रण, रिश्वत और अस्पृश्यता निवारण आदि के लिए उनका प्रयास गांवों और नगरोंदोनों में ही चलता है । अणुव्रत आन्दोलन के अन्तर्गत नये मोड़ के माध्यम से मेवाड़ जैसे रूढ़ि ग्रस्त क्षेत्र में सामूहिक परिवर्तन का श्रेय आचार्यश्री के इस आन्दोलन को ही दिया जा सकता है । नारी जागरण अपने आचार्य-काल के प्रारंभ से ही आचार्यश्री ने नारी जाति के जागरण हेतु विशेष ध्यान दिया । साध्वियों के अध्ययन पर जहां उन्होंने काफी समय और श्रम लगाया वहां महिलाओं को भी रूढ़ि - मुक्त एवं सादगीपूर्ण जीवन जीने की ओर प्रेरित किया । इसमें उन्हें आशातीत सफलता भी मिली । साहित्यिक अवदान आचार्यश्री तुलसी का साहित्यिक क्षेत्र का अवदान भी बहुत विशाल है । गद्य और पद्य - दोनों ही विधाओं में उनकी लेखनी से प्रचुर साहित्य का सर्जन हुआ है । उनके तत्त्वावधान में जैन आगमों का सम्पादन उनके उत्तराधिकारी युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ कर रहे हैं । आधुनिक और असाम्प्रदायिक दृष्टि से सम्पादित इन आगमों का विद्वानों ने हृदय से स्वागत किया है । आचरण प्रधान धर्म का उद्घोष आचार्यश्री ने धर्म को केवल क्रियाकांडों या केवल पूजा-विधानों के घेरे से बाहर freeने का प्रयास किया है। उनका कथन है कि धर्म जीवन-व्यवहार को बदल देने वाला तत्त्व है । वह आचरण प्रधान है । वे बहुधा फल का उदाहरण देकर समझाया करते हैं कि क्रियाकांड तो फल के गूदे की सुरक्षा करने वाले छिलके की जगह है | गूदे के स्थान पर तो आचरण ही है । धर्म की वार्तमानिक निस्तेजस्कता में एक मुख्य कारण वे क्रियाकांडों की प्रमुखता हो जाने को मानते हैं । धर्म को तेजस्वी बनाने के लिए उन्होंने उसका अध्यात्म के साथ अनुबंधित होना अनिवार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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