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________________ दर्पण एक : हजारों चेहरे १६३ ने मुनि हेमराजजी से कहा— देख, संसार की माया कितनी कच्ची है ? खेतसीजी जैसा प्रबल व्यक्ति एक ही दिन में इतना निर्बल हो गया । वे उनके पास बैठकर शरण आदि दिलाने लगे। कुछ समय पश्चात् उनकी मूर्च्छा टूटी, तब स्वामीजी से कहने लगे- 'आप रूपांजी को पढ़ाने की कृपा करना । स्वामीजी ने तत्क्षण टोकते हुए कहा- 'रूपांजी की चिन्ता छोड़ और अपनी चिंता कर । तेरे लिए यह समय समाधि पूर्वक आत्म-चिंतन में लगने का है। बहन की चिंता करने का नहीं ।' खेतसीजी ने स्वामीजी का कथन शिरोधार्य किया। कुछ दिन पश्चात् वे रोग मुक्त हो गए । न्याय की तुला पर स्वामीजी एक न्यायप्रिय एवं नीति- परायण आचार्य थे । व्यक्तियों का पारस्परिक मनोमालिन्य मिटाकर उनमें सद्भाव उत्पन्न करना उन्हें खूब आता था । पक्षपात सदैव न्याय और नीति का प्रतिपक्ष रहा है । स्वामीजी उसे कभी प्रश्रय नहीं देते थे । यद्यपि छद्मस्थावस्था के कारण मनुष्य राग और द्वेष से सर्वथा मुक्त नहीं हो पाता है, फिर भी स्वामीजी जैसे कुछ ऐसे महान् व्यक्ति होते हैं, जो अपने मानसिक संतुलन को किसी भी स्थिति में डिगने नहीं देते । स्वामीजी तर्कों के आधार पर नहीं, वास्तविकता के आधार पर न्याय किया करते थे । अपने संघ के साधु-साध्वियों के लिए तो उन्होंने मर्यादा बनाते समय यहां तक लिख दिया कि यदि कोई व्यक्ति तुम्हारे चलने, बोलने तथा प्रतिलेखन करने आदि की दैनिक क्रियाओं में सच्ची तथा झूठी भी त्रुटि निकाले, तो तुम उसका प्रतिवाद मत करो। आगे के लिए उस विषय में अधिक सावधान रहने का ही विचार व्यक्त करो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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