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१६२ चिन्तन के क्षितिज पर
भावना है, पर अब अपना निश्चित निर्णय बतला कि मेरे जीते जी लेगा या मरने के पश्चात् ?'
स्वामीजी की उक्त बात हेमजी के हृदय में चोट कर गयी। वे खिन्न होकर बोले-'आप ऐसी बात क्यों कहते हैं ? मेरे कथन की सत्यता में आपको शंका हो तो नौ वर्ष के पश्चात् अब्रह्मचर्य का त्याग करा दें।'
स्वामीजी ने त्याग करवा दिये और कहा--'लगता है विवाह करने की इच्छा से तूने ये नौ वर्ष रखे हैं। परन्तु तुझे यह समझ लेना चाहिए कि लगभग एक वर्ष विवाह होते-होते लग जायेगा । विवाह के पश्चात् यहां प्रथा के अनुसार एक वर्ष तक स्त्री पीहर में रहेगी। इस प्रकार तेरे पास सात वर्ष का समय रहा। उसमें भी दिन के अब्रह्मचर्य का तुझे परित्याग है, अतः साढ़े तीन वर्ष ही रहे। इसके अतिरिक्त तुझे पांचों तिथियों के भी त्याग हैं। उन दिनों को बाद देने पर शेष दो वर्ष और चार महीने का समय ही बचता है। उन अवशिष्ट दिनों में भी सारा समय भोग-कार्य में नहीं लगता। प्रतिदिन घड़ी भर का समय गिना जाये, तो लगभग छह महीने का समय होता है। अब सोच कि केवल छह मास के भोग के लिए नौ वर्ष का संयम खो देना कौन-सी बुद्धिमत्ता है ? यदि एक-दो संतान हो जाए, तब फिर व्यक्ति उनके मोह में उलझ जाता है। उस स्थिति में संयम-ग्रहण करना कठिन हो जाता है ।' स्वामीजी के उक्त लेखे-जोखे ने हेमजी की संयमभावना को उद्दीप्त कर दिया और उन्होंने उसी समय पूर्ण ब्रह्मचर्य स्वीकार कर लिया। कुछ दिनों के अनन्तर तो वे प्रव्रजित ही हो गये। अमृतमयी प्रेरणा के सूत्रधार आचार्य भिक्षु अध्यात्म-प्रेरणा के एक महान् स्रोत थे। उनका प्रत्येक कार्य व्यक्ति के अध्यात्म-भाव को जागृत करने वाला होता था। उनके मुख से निःसृत वाणी का निर्झर व्यक्ति के हृदय को विराग भाव से सिञ्चित कर जाता था। जो उनके संपर्क में आता, वह मोह से अमोह की ओर, प्रमाद से अप्रमाद की ओर तथा अज्ञान से ज्ञान की ओर आगे बढ़ने की अमृतमयी प्रेरणा प्राप्त करता था।
रूपांजी की चिंता छोड़ वि० सं० १८५५ का चातुर्मास स्वामीजी ने पाली में किया। वहां मुनि खेतसीजी अचानक रुग्ण हो गये । वमन और अतिसार ने उनके शरीर को शिथिल बना दिया। रात्रि में शारीरिक आवश्यकता से वे बाहर गये तो वापस आते समय मार्ग में ही मूच्छित होकर गिर पड़े। धमाका सुनकर स्वामीजी जाग पड़े । उन्होंने मुनि हेमराजजी को जगाया। दोनों ने मिलकर मार्ग में मूच्छित पड़े मुनि खेतसीजी को उठाया और बिछौने पर लाकर लिटाया। उनकी शारीरिक दशा देखकर स्वामीजी
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